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‘गुरु बिना मनुष्य जीवन व्यर्थ’
गणेष नगर औरंगाबाद में धर्मसभा में दिनेष मुनि ने कहा - गुरु नाम के जाप से मिटते हैं संकट
जिसका गुरु रूठ जाए उसे ठौर नहीं ठोकर मिलती है।
औरंगाबाद - 13 मार्च 2016।
जिसके जीवन में गुरु नहीं, उसका जीवन शुरू नहीं। जीवन की शुरुआत गुरु के द्वार से होनी चाहिए, इस द्वार से गुजरे बिना कभी किसी को कुछ नहीं मिला। जिन्हें कुछ मिला भी है तो उस उपलब्धि का कोई मूल्य नहीं रहा। वे उपलब्धि थोथी होती है, मूल्य विहीन होती है। मूल्यवान तो गुरु से ही मिलता है, गुरु ही मूल्यवान बनाते हैं। ये विचार रविवार को श्रमण संघीय सलाहकार दिनेष मुनि ने श्री गुरु गणेष स्थानकवासी जैन षिक्षण संस्थान, गुरु गणेष नगर ‘औरंगाबाद’ द्वारा आयोजित आचार्य देवेन्द्र मुनि के 76 वें दीक्षा दिवस के पावन अवसर पर धर्मसभा में व्यक्त किए।
सलाहकार प्रवर ने आगे कहा कि दुनिया उसे याद करती है जो कुछ देकर जाता है। आचार्य देवेन्द्र मुनि किसी धर्म विषेष के आचार्य नहीं अपितु समग्र मानव समाज के धर्माचार्य थे। सारी मानवजाति के महाप्राण थे। संतों का जीवन/कार्य धर्म की रक्षा करना और समाज कल्याण के लिए होता है। जब जब धर्म पर संकट आया व समाज में विपत्तियों ने जन्म लिया तब तब इस धरा पर महापुरुषों का जन्म हुआ ओर उन्होंने धर्म व समाज की रक्षा के लिए अपने आपको समर्पित कर दिया। आचार्य देवेन्द्र मुनि का सम्पूर्ण जीवन मानवता के कल्याण के लिए था।
उन्होंने कहा कि भारत के मनीषियों ने तो गुरु को गोविंद से भी बढ़कर बता दिया है। पैसा मिलने पर बेटा पिता को और पद मिलने पर षिष्य गुरु को बदल लेता है, जो अपना गुरु का नहीं हो सकता वो किसी का नहीं हो सकता। गुरु गोविंद से मिलाने का महामंत्र है। ये वो महामंत्र है जो छोटे से जीवन को महाजीवन बना देता है, महात्मा ही नहीं, परमात्मा भी बना देता है। इसलिए मैं आप से निवेदन करना चाहता हूं कि गुरु नाम का जाप करो तुम्हारे पाप, संताप सब नष्ट हो जाएंगे। उपस्थित श्रद्धालुओं से कहा कि तुम्हारे मां-बाप रूठ जाएं तो ज्यादा गम मत करना, तुम्हारी बहिन रूठ जाए तो चिंता नहीं, तुम्हारा मित्र रूठ जाए तो दुखी मत होना, सारा जगत रूठ जाए तुमसे तुम्हारा प्रभु रूठ जाए तो समझना कुछ भी नहीं गया। यदि गुरु रूठ गया तो सब कुछ चला गया, क्योंकि जिसका प्रभु रूठ जाए उसको गुरु की ठौर मिल जाती है। जिसका गुरु रूठ जाए उसे ठौर नहीं ठोकर मिलती है। रूठे हुए प्रभु को गुरु मना सकता है, लेकिन रूठे हुए गुरु को कोई नहीं मना सकता।
कठिन है शिष्य बनना
सलाहकार प्रवर ने आचार्य देवेन्द्र मुनि के साथ बिताए 27 वर्षों का अनुभव सुनाते हुए कहा कि गुरु कुम्हार की तरह है शिष्य कुंभ की तरह। गुरु पहले मिटाता है फिर बनाता है। मिट्टी जाती है कुम्हार के पास कुम्हार मिट्टी को पहले पैरों से कुचलता है दलित करता है पैरों से मचाता है। मचाने के बाद भी वह मिट्टी कुम्हार के पैरों से लिपटी है पैरों से दूर होना नहीं चाहती। पैरों से बुरी तरह दलित होने के बाद भी वह कुम्हार से खेद खिन्न नहीं होती। अपना अस्तित्व मिटाना चाहती है। इतना समर्पण देखकर कुम्हार उस मिट्टी को अपने हाथों में उठा लेता है और चाक पर रखकर उसके दर्द को सहलाने के लिए चाक को घुमाता है और अपनी करूणा बरसाते हुए हाथों का सहारा देकर कलश का रूप देता है। फिर जिस मिट्टी को उसने पैरों से कुचला था उसे आहिस्ता से उठाता है और कलश के अंदर करूणा का हाथ देकर उस पर धीरे-धीरे एक हाथ से चोट देता है। कहीं मिट्टी बिखर जाए इसका ध्यान रखता है। एक बार फिर वह कच्ची मिट्टी के कच्चे समर्पण की परीक्षा करने के लिए पुनः कलश को जलती हुई भट्टी में झोंक देता है तू जा और पक कर आ। फिर देखना मैं ही नहीं सारा जगत तुझे मंगल मानेगा और दुनिया फिर तुझे कभी पैरों में नहीं रखेगी, सिर पर रखकर घूमेगी और तेरी शीतलता का पान करेगी। पैरों की मिट्टी सिर पर चढ़ जाती है मंगल हो जाती है। मंगल कलश हो जाती है एक समर्पण भाव से। मिट्टी का समर्पण मिट्टी को मंगल बना देता है तो शिष्य का समर्पण शिष्य को महामंगल बना दे तो क्या आश्चर्य है? धन्य है वह मिट्टी, धन्य है वह कुम्हार जो पैरों की मिट्टी को सिर पर चढ़ा लेता है। मुनि ने कहा कि दुनिया में सदगुरु का मिलना जितना कठिन है। उससे भी ज्यादा कठिन समर्पित शिष्य का मिलना है। इसलिए शिष्य मिलना कठिन है, शिष्य बनना कठिन है।
कोटा संम्प्रदाय प्रवर्तिनी महासाध्वी प्रकाषकुंवर ने आचार्य देवेन्द्र मुनि को अलौकिक पुरुष बताते हुए समाज में संगठन की शक्ति पर प्रबल जोर दिया। महासाध्वी सुषीलकंवर ने कहा किएकता के लिए जो कार्य उन्होंने किए वो समाज कभी भूला नहीं सकता। ओर समाज को आव्हान करते हुए कहा कि हमें आचार्य देवेन्द्र के बताये हुए रास्ते पर चलना चाहिए। इसी क्रम में साध्वी आगमश्री, साध्वी जयश्री, साध्वी प्रबोधिश्री ने विचार व्यक्त किये।
डॉ. द्वीपेन्द्र मुनि ने उन्हें एकता के प्रबल समर्थक बताया। उन्होनें कहा कि दढ़संकल्प से की गई भक्ति ही सफल होती है ओर विकास की ओर ले जाती है। डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि ने आचार्य देवेन्द्र को अपना सच्चा पथ प्रदर्शक एवं साधुत्व का महान साधक बताय्ाा और कहा कि आचार्य देवेन्द्र मुनि साहित्य सर्जक ही नहीं अपितु साहित्य सर्जकों के निर्माता भी थे।
इससे पूर्व प्रारम्भ में नवकार महामंत्र महाजाप का आयोजन हुआ जिसमें श्रद्धालुजनों ने एक साथ एक स्वर में बैठकर सामूहिक रुप से जाप किया। समारोह में हाईकोट जस्टिस श्रीमती उमा बोरा, गुरु गणेष समिति महामंत्री शेखर देसरड़ा, श्री संघ अध्यक्ष प्रकाष बाफना, कन्हैयालाल कोटेचा, मंगलाबाई मुगदिया, नितिन ओस्तवाल, महावीर गादिया, विनोद जैन इत्यादि वक्ताओं ने विचार रखते हुए श्रद्धासुमन अर्पित किये। समारोह का संचालन डॉ. पुष्पेन्द्र मुनि व धन्यवाद की रस्म श्री गुरु गणेष स्थानकवासी जैन षिक्षण संस्थान के कोषाध्यक्ष डॉ. प्रकाष झांबड़ ने अदा की। समारोह पश्चात् गौतम प्रसादी का आयोजन लाभार्थी परिवार सुश्राविका प्रभादेवी डॉ.चंपालालदेसरडा, शेखर सुनीता, किषोर - नयना, मधुर, उत्कर्ष देसरडा परिवार थे।