09.03.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 09.03.2016
Updated: 05.01.2017

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🚩🚩🚩आचार्य देशना🚩🚩🚩
🇮🇳"राष्ट्रहितचिंतक"जैन आचार्य 🇮🇳
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
तिथि: फाल्गुन अमावस्या, २५४२

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प्रायः अपढ़
दीन पढ़े मानी पै
विरले ज्ञानी

भावार्थ: प्रायः देखने में आता है कि अनपढ़ व्यक्ति दीनता का अनुभव करता है । जो थोड़ा पढ़ लिख जाता है वह मान (अहंकार) से भर जाता है । ऐसे व्यक्ति जो पढ़े लिखे भी हों और जिनको अपनी बुद्धिमत्ता का मान भी न हो ऐसे ज्ञानी लोग संसार में विरले अर्थात दुर्लभ हैं ।
आज देखने में आ रहा है कि जीवनोपयोगी अन्न एवं अन्य खाद्य सामग्री का उत्पादन करने वाले किसान जो शिक्षा पर ज़्यादा ध्यान नहीं दे पाते उन्हें दीन समझा जाता है और कई नयी पीड़ी के उनके ही वंशज भी कृषि पशु पालन आदि कार्यों को दीनता का कार्य समझने लगे हैं । जो लोग थोड़े पड़ लिख गए हैं वो अपने अंग्रेजी ज्ञान और मैकॉले शिक्षा पद्धति से उत्पन्न मानसिकता एवं मान के कारण भारतीय सभ्यता एवं संस्कृति को ऑउटडेटेड कहकर उसका उपहास करते हैं एवं पाश्चात्य संस्कृति के गीत गाते फिरते हैं । उसी संस्कृति को अपने खान-पान रहन-सहन में अपना कर अपनी मातृभूमि से कटते जा रहे हैं एवं दाल-रोटी की संतोष वृत्ति को छोड़कर परिग्रह एवं अत्याधुनिक सामग्री एकत्रित करने में लगे हैं ।
ऐसे ज्ञानी लोग जो "ऋषि बनो अथवा कृषि करो" के सिद्धांत पर विश्वास करते हैं और मोक्ष पुरुषार्थ को प्राथमिकता देने के बाद धरती से अन्न रुपी सोना उत्पन्न करने को सबसे उपयुक्त कर्म मानते हैं । जो अन्न का और अन्नदाता (किसान) का अनादर नहीं करते । जो ज़्यादा वस्तुओं का संग्रह नहीं करते एवं कम से कम परिग्रह में अपना जीवन यापन करते हैं एवं रोटी, कपडा और मकान रुपी अस्तित्व रक्षा की सामग्री सबको समान रूप से उपलब्ध हो इस धारणा को रखते हैं, वे इस धरती पर विरले ही हैं ।
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