13.02.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 14.02.2016
Updated: 05.01.2017

Update

❖ for English readers ❖ Willing folks are welcome to LIKE @ Jainism -the Philosophy community where you would love to rectify your ideology of Dharma [ A true awakening way in spreading peace throughout the world & where it points to the purification and moral transformation of human beings ], Cause, It is beyond the boundary of sectarianism/religion and transcends the exclusionary definition by Rational Perception, Rational Knowledge and Rational Conduct [Gem-trio - United constitute] that is The path to libation. Let's climb on journey of, with contemplation of illuminating text to remove the shutter of erroneous, smattering to achieve rational outlook of Dharma [ Religion ] for a sweep up conduct. Must make every step with full of consideration. The motive to spread Rational fragrance in the air through it. Before reaching any conclusion we should focus on four things, e.g. what the literature says, logic adherence, Rational Ascetic teacher instruction and empirical viewpoint.

Jainism -the Philosophy

News in Hindi

Source: © Facebook

❖ दिगंबर सरोवर के राजहंस आचार्य विद्यासागर जी महाराज के विडियो प्रवचन @ Youtube - Subject: वीतरागता की उपासना... तप धर्मं! गजब के प्रवचन.. जरुर सुने ❖

PART-1: www.youtube.com/watch?v=4FzO6nTbOgk
PART-2: www.youtube.com/watch?v=bzd5ra3COjE
PART-3: www.youtube.com/watch?v=oXpuCldYaBo
PART-4: www.youtube.com/watch?v=ajfcp_taSmk
PART-5: www.youtube.com/watch?v=u_3HX8fII-k
PART-6: www.youtube.com/watch?v=9uX0wL9Obl0

Source: © Facebook

✿ आचार्य श्री वर्धमानसागर जी, आचार्य श्री ज्ञानसागर जी, आचार्य श्री गुप्तीनंदी जी -3 महासागर के मिलन पर हुए मंत्र-मुग्ध करदेने वाले और दिल को छुजाने वाले प्रवचन WITH YOUTUBE VIDEO...! PLEASE SHARE IT -युवा पीढ़ी के लिए विशष पढने योग्य ✿

••• आचार्य श्री ज्ञानसागर जी महाराज के प्रवचन के अंश: एक समय ऐसा था जब दिगंबर मुनिराजो के दर्शन नही होते थे, तब दो सूर्य का उदय एक और चारित्र चक्रवर्ती आचार्य श्री शांतिसागर जी मुनिराज और दूसरी और छानी आचार्य श्री शांतिसागर जी मुनिराज... के रूप में हुआ, 300-400 वर्ष का समय ऐसा गुजरा पंडित बनारसी दास और भुदर दास जैसे लोग तरसते रहे लेकिन मुनीयो के दर्शन नहीं हुए, और वे शास्त्रो में पढ़ते थे! तब कोई इक्का दुक्का मुनिराज दीखते थे... आचार्य वर्धमानसागर जी महाराज की सन 1979 में आंखे चली गयी थी तो पूरा संघ, पुरे भरत का जैन समाज चिंतित हो गया था तब उम्र भी कम थी तो सल्लेखना भी नहीं हो सकती थी तो पुरे संघ ने और आचार्य महाराज ने शांतिअष्टक पढ़ा और पढ़ते हुए आंखे आ गयी थी तो मैं तो कहता हूँ आज भी सतयुग है, जो देव शास्त्र गुरु में आस्था रखता हूँ उनके लिए सतयुग है और जो क्लब, होटल की संस्कृति में विश्वास रखता है उसके लिए कलयुग है!

13-20 [ पंथ] की दुरिया बढती जा रही है ये आपकी लिए ही नहीं बल्कि पुरे विश्व के लिए घातक है, आचार्य वर्धमानसागर जी बहुत वात्सल्य देते है और बहुत उदारवादी है, आचार्य श्री वैसे उत्तर के है परन्तु परम्परा दक्षिण की है जब हम और वे एक साथ बैठ सकते है तो क्या आप श्रावक नहीं बैठ सकते? हम छोटी छोटी बातो में निश्चय नय /व्यवहार नय/13/20/पूजा में उलझे रहेंगे तो बड़े बड़े काम कैसे करेंगे! ये महावीर की मुद्रा है... जो अभी 18500 वर्ष से भी ज्यादा ये परम्परा रहने वाली है!

आचार्य वर्धमानसागर जी से वर्तमान से सब साधुओ को शिक्षा लेनी चाहिए, अब खाली प्रवचन शैली से काम नहीं चलने वाला है, जिन धर्मं प्रभावना होगी वो चारित्र से होगी, आचरण और त्याग तपस्या के माध्यम से होगी और मैं एक बात कहता रहता हूँ जो साधू जितना निस्परिग्राही होगा, भक्तो के तो बिना आशीर्वाद के संकेत कटते चले जायेंगे! भर्तहरी तो मिटटी को सोना बनाते थे, ये मुनिराजो के चरण के का प्रभाव है, मुनिराजो को आहार, विहार, वय्याव्रत्ति करिए फिर देखिये, बिना किसी नग को पहने, तपस्वी मुनिराज के भक्तिरूपी नग को पहनिए फिर देखिये और साडे-सातिया सब भाग जाए...

आचार्य वर्धमानसागर जी सिर्फ कुए का पानी और सिगड़ी का बना हुआ भोजन ग्रहण करते है, 13 पंथी और 20 पंथी सब मतभेदों को दूर करने की आवशकता है, हम सब एक जैन है बस यही जरुरत है वरना आज के युवक नौजवान और युवा पीढ़ी हमें माता पिता को माफ़ नहीं करेगी, आज युवा पीढ़ी मंदिर जाने को तैयार नहीं है और हम उनको पंथवाद में फसा देते है, उन्हें नि मालुम ये पंथ सब, हमें आचार्य श्री वर्धमानसागर जी से बहुत अपेक्षा है... आज भी दिल्ली में सैकड़ो की संख्या में युवा लोग विहार आदि में आते है और धर्मं समझते है.. आज भी सतयुग हो सकता है...

••• आचार्य श्री वर्धमानसागर जी मुनिराज के प्रवचन के अंश: जहा तक जैन धर्मं की प्रभावना की बात है... आचार्य प्रभाचन्द्र स्वामी ने दो ही मार्ग बताये है, रत्न-त्रय की भावना रखने वाले जीव सम्यक दर्शन, सम्यक ज्ञान और सम्यक चरित्र से अपनी आत्मा को इतना प्रभावित करले की जो भी फिर उन साधक के संपर्क में आये वो प्रभाविक हुए बिना रह ना सके! और श्रावक तप से दान से पूजा अर्चना से, स्वाध्याय से ज्ञान प्राप्त करके धर्मं की प्रभावना की जा सकती है!

जिन धर्मं बटने से आगे पढने वाला नहीं है, पन्थो के नाम पर हम ना बटे, संतो के नाम पर हम ना बटे, आज तीन परम्पराय एक साथ एक मंच पर बैठी है और इससे ज्यादा क्या सन्देश चाहिए सारे देशवासियों को संगढ़ित होने के लिए है, जब तीन परंपरा वाले एक साथ बैठकर एक साथ चर्चा कर सकते है और रह सकते है तो समाज के श्रावक के बिच भी यह भेदभाव समाप्त होना चाहिए, इस प्रकार यदि हम बटते चले गए तो लोग हमपर हावी होंगे, हमें बहुत सारे काम करने वाले है तीर्थो की रक्षा करनी है, जिनवाणी का संरक्षण करना है जैन ग्रंथो की होली जली है, हमें विचार करना चाहिए यदि हमपर फिर आक्रमण हुआ तो फिर क्या होगा! सब बाते भूलकर मात्र जिन धर्मं के मात्र जिन धर्मं की प्रभावना के लिए और धर्मं के संरक्षण के लिए हमें सब पंथ बातो को भूलना चाहिए, हमें संस्कृति के लिए हमें संगठित होने की अव्शाकता है, बहुत ज्यादा बटवारे हो रहे है, आप लोग इस द्रश्य को अपने ह्रदय में उतारे और श्रावक भी एक साथ हो जाए, इन पन्थो से उपर हमारे तीर्थ है हमारी संस्कृति है जिसकी रक्षा के लिए हमें संगठित होना है, जय बोलो महावीर भगवान् की जय!!

ये मिलन 14 अप्रैल 2014 को राजपुर रोड नयी दिल्ली में हुआ था, जिसके विडियो को मैंने Youtube पर अपलोड कर दिया है आप देख सकते है ये 3 भाग में है जिसके लिंक:
PART-1: www.youtube.com/watch?v=EkFmcjHGCFE
PART-1: www.youtube.com/watch?v=-BF7SDS-Mn4
PART-1: www.youtube.com/watch?v=l2QY4woC4eE

आप सबसे एक रिक्वेस्ट है की इन सबको अपलोड करने में लिखने में बड़ा समय लगता है इसलिए प्लीज इस आर्टिकल को ज्यादा से ज्यादा शेयर करे ताकि लिखना और Youtube पर प्रवचन डालना सार्थक हो, सब जैन तक ये बात पहुचे –Nipun Jain

Sources
Categories

Click on categories below to activate or deactivate navigation filter.

  • Jaina Sanghas
    • Digambar
      • Acharya Vidya Sagar
        • Share this page on:
          Page glossary
          Some texts contain  footnotes  and  glossary  entries. To distinguish between them, the links have different colors.
          1. Contemplation
          2. Dharma
          3. Jainism
          4. Nipun Jain
          5. आचार्य
          6. ज्ञान
          7. दर्शन
          8. धर्मं
          9. पूजा
          10. महावीर
          Page statistics
          This page has been viewed 828 times.
          © 1997-2024 HereNow4U, Version 4.56
          Home
          About
          Contact us
          Disclaimer
          Social Networking

          HN4U Deutsche Version
          Today's Counter: