29.01.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 29.01.2016
Updated: 05.01.2017

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✿ दिगम्बर जैन साधू की आहारचर्या” ✿ (SHARE अवश्य करें, इस कठिन जैन तप और त्याग की क्रिया से सबको अवगत कराएं) ✿ must read:)

देखकर दिगम्बर मुनि की आहारचर्या,भाव मैंने भी बनाया चौका मैं भी लगाऊंगा —जब भी मुनिसंघ शहर में आएगा!
सुना है मैंने, उत्कृष्ट अतिथि होते हैं दिगम्बर मुनि
आहारदान से जिनके—मिलती उत्कृष्ट पुण्यवृद्धि
कर पात्री होते दिगम्बर मुनि
तीन लोक के नाथ के समक्ष लेते पढ़गाहन की विधी
न कोई पूर्व निश्चित होता उनका, किसके यहाँ होगा उनका आहार
जिनप्रतिमा के दर्शन करके, करते धारणा मन में, लेते प्रतिज्ञा, करते नमोस्तु बारम्बार..
विशेष मुद्रा लिए जब निकलते वो, श्रावकों के घर की ओर....
देख कर चौके वाले—निकल आते घरो से बाहर
जोर जोर से निमन्त्रण देते—गुरुवर पधारो हमारे द्वार
आहार-जल शुद्ध है - करो कृतज्ञ हमें, लेकर आहार दान...
प्रतिज्ञा यदि मिल जाती उनके अनुकूल, खड़े हो जाते श्रावक के द्वार
तीन प्रदिक्षना देकर
सभी श्रावक देते निमंत्रण—गुरुवर आहार जल शुद्ध है
मन शुद्धि-वचन शुद्धि का्य शुद्धि पूर्वक, किया है चौका तैय्यार...
आहार ग्रहण कर, करो हम पर उपकार...
चौके में पहुँचने पर सभी श्रावक-श्राविका एक साथ
नवधा भक्ति पूर्वक करते गुरुचरणों में वंदना
और उच्च आसन ग्रहण कराकर—करते पूजन का व्यवहार..
जो मुद्रा ग्रहण कर चले थे मुनिराज—करते सभी प्रार्थना
गुरुवर! प्रतिज्ञा छोड़ ग्रहण करो आहार....
जब देख लेते मुनिवर—46 दोषों से रहित योग्य है आहार
तभी मुद्रिका छोड़—खड़े होकर करते प्रार्थना स्वीकार...
किसी रोज नमक-कभी घी-कभी मीठा का रखते वो त्याग
चौके वाले दिखाकर रस एक थाली में—पूछते किस रस का है आज त्याग—
फिर शुरू होता मुनिराज का आहार— उनका पूरा आहार - करते हाथ में ही ग्रहण
मौन मुद्रा में खड़े रहकर—करते आहार
नहीं उनको मतलब किसने क्या पहना है अथवा नमक-मिर्च का न रखते विकल्प-जैसा मिला वैसा किया ग्रहण—उदरपूर्ति का होता मात्र ध्येय
आहार में यदि कोई अशुद्धि आ जावे
जभी छोड़ देते आहार-न करते फिर दोबारा आहार उस दिन
साधू तो लेता बस दिन में एक ही बार आहार...
यदि चूक हो गई—अथवा नहीं मिले विधि
तो लौट आते अपने स्थान—
फिर तो बस अगले दिन ही होगा आहारचर्या का व्यवहार
कुएं का जल-घर का पिसा आटा और मसाले- शुद्धता पूर्वक निकलवाया गया दूध- घर का बना घी
और भी अनेक कठिन क्रियाये--जो करनी होती अंगीकार..
जैसे मुनिवर आहार लेने से पूर्व सबसे करवाते कुछ न कुछ त्याग—
जैसे नित्य देवदर्शन, रात्रि भोजन आदि का त्याग, करते अंगीकार..जभी लेते उनसे आहार...
कुछ भी इतना सब कठिन जानने के बाद...
अबकी बार - महाराज का आहार - होगा मेरे द्वार
वंदन बारम्बार.. दिगंबर आचार्य, मुनिवर, आर्यिका माताजी के चरणों में कोटि कोटि वंदन..

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आचार्य देशना
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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जुडो न जोड़ो
जोड़ा छोडो जोड़ो तो
बेजोड़ जोड़ो

भावार्थ: यह कथन समस्त चेतन अचेतन परिग्रह के विषय में हैं । परिग्रह अर्थात मूर्छा या मोह । यह मूर्छा चेतन जैसे स्त्री,पुत्र, माता, पिता, मित्र आदि में अथवा अचेतन अर्थात मकान, जमीन, गाड़ी, सोना, चांदी, रुपये, वस्त्र, दास, दासी आदि में हो सकती है । आचार्य श्री कहते हैं न ही परिग्रह से जुडो, न परिग्रह जोड़ो, जो कुछ परिग्रह जोड़ रखा है उसे छोडो और अगर जोड़ना ही चाहते हो तो उन्हें जोड़ो जो बेजोड़ हैं । और बेजोड़ हैं हमारे अरिहंत आदि परमेष्ठी भगवान जो स्वयं किसी से नहीं जुड़ते किन्तु ऐसे बेजोड़ को जोड़ने की इच्छा रखने वाले लोग उनसे अवश्य जुड़ जाते हैं ।
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