28.01.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 28.01.2016
Updated: 05.01.2017

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✿ पूस की कपकपा देने वाली ठण्ड की मध्य रात्रि थी महारानी चेलना अपने महल में सो रही थीं उनका एक हाथ रज़ाई से बाहर होने से ठण्ड के कारण थोड़ी देर के लिए सुन्न हो गया था। ✿ जब मध्य रात्रि में उनकी नींद खुली तो उनके मुह से निकला "हे भगवन, इस विकराल ठण्ड में वे कैसे होंगे।" ✿

राजा श्रेणिक उनके बगल में सो रहे थे, जब उन्होंने चेलना के यह शब्द सुने तो वे सोचने लगे की चेलना ने किसके बारे में कहा, चेलना के चेहरे का तनाव बता रहा है कि वे किसी विशेष व्यक्ति की चिंता में है।
श्रेणिक को लगा की चेलना के जीवन में और कोई भी है उनका सन्देह गहरा होने लगा पूरी रात न सो सके।

उन्हें कसक थी की चेलना के जीवन में और कोई है।
उन्होंने प्रातः पुत्र को बुलाया और आदेश दिया की आज रात में जब चेलना सोई हो उसके कक्ष में आग लगा दी जाए जिससे चेलना अग्नि में भस्म हो जाए।
रात्रि में चेलना जब सामायिक करने जा रही थी सो श्रेणिक से रहा नही गया वे पूछ बैठे वे कौन थे जिसके बारे में मध्य रात्रि में इतनी चिंतित थी। जब चेलना ने जवाब दिया तो सन्न रह गए श्रेणिक
श्रेणिक को लगा ओह यह तो मेरी गलती थी। मैं कुछ और समझा था।

लेकिन थोड़ी देर में मेरा बेटा कक्ष में आग लगा देगा चेलना का क्या होगा इसी चिंता में न सो सकें। थोड़ी देर में देखा एक दुसरे कक्ष में भीषण आग लगी है वे भाग कर चेलना को अलग ले जाते है।
दुसरे दिन पुत्र के सामने लज्जित होते हुए उन्होंने कहा बेटा मुझे एक पाप से बचा लिया।
पुत्र ने कहा मुझे मालुम था आप आवेश में ऐसा आदेश दे रहे है। सो मैंने आपके आवेश को शांत करने दुसरे कमरे में आग लगा दी थी।

यह 20 वर्ष पूर्व पूज्य आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज के मुख से सुनी कथा है कुछ त्रुटी हो तो सुधार कर पढ़े।
आपको यह कथा पढ़ कर बताना है कि वे कौन थे जिन्हें चेलना रानी आकुलता से स्मरण कर रही थी।
इसके साथ इस कथा से 3 शिक्षा मिलती है आपने क्या शिक्षा ली अपनी प्रतिक्रिया जरूर देवे।
इसे आज की चर्चा मान कर अपनी भावना व्यक्त करे।

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आचार्य देशना
आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज
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लक्ष्मण रेखा का उल्लंघन रावण करे या सीता करे
चाहें राम ही क्यों न करें,
सजा अवश्य मिलेगी ।

----- मूकमाटी महाकाव्य (आचार्य श्री विद्यासागर जी महा मुनिराज)

भावार्थ: भारत वह देश है जहाँ बचपन से ही हमे संस्कारों के रूप में मर्यादाओं की घुट्टी पिलाई जाती है । बालक- पालक के बीच मर्यादा, विद्यार्थी - शिक्षक के बीच मर्यादा, स्त्री-पुरुष के बीच मर्यादा, सभी की अपनी अपनी मर्यादायें होती है । इन मर्यादाओं का उल्लंघन चाहें व्यभिचारी करे, अथवा शीलवती स्त्री करे अथवा प्रजा का पालक राजा ही क्यों न करे । इसके उल्लंघन की सजा सभी को भोगनी पड़ती है । आज इस परिपेक्ष में जब सारी मर्यादायें समाप्त होती जा रही है सभी को इस पाठ की महती आवश्यकता है ।
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