25.01.2016 ►STGJG Udaipur ►News

Published: 25.01.2016

News in Hindi

दीक्षार्थी सोनाली बनीं साध्वी सर्वज्ञाश्री
विशाल जनमेदनी की उपस्थिति में हुई दीक्षा
बेंगलूरु। यहां के वर्धमान स्थानकवासी जैन श्रावक संघ के तत्वावधान में संतश्री कांतिमुनिजी, नरेशमुनिजी, कपिलमुनिजी, शालिभद्रमुनिजी, गणिवर्य दिव्येशचन्द्रसागरजी म.सा, साध्वीश्री चन्दनबालाजी, सुप्रभाजी, डॉ प्रतिभाजी, राजमतिजी, रिद्धिश्रीजी एवं तेरापंथी साध्वीश्री कंचनप्रभाजी व काव्यलताजी म.सा. आदि साधु साध्वियों की सान्निध्यता में दीक्षा महोत्सव के मुख्य दिन रविवार को दोपहर के शुभ मूहूर्त में मुमुक्षु सोनाली बम्बोरी की दीक्षा पूरे मंत्रोच्चार के साथ पूर्ण हुई। दीक्षा के पूर्व सुबह वृहद थाल विधि हुई। दीक्षार्थी की दीक्षा के पूर्व अभिनिष्क्रमण यात्रा निकाली गई जिसमें शोभायात्रा के साथ दीक्षार्थी दीक्षा स्थल पहुंचीं। फ्ैंद्भद्ब ध्ष्ठद्मय् फ्य्ब्फ्र्‍ ्यद्मह्लय्श्चद्भ ब्स्जैसे ही दीक्षार्थी नाचते गाते हुए दीक्षा स्थल पर पहुंचीं तो बहुत ब़डी संख्या में उपस्थित श्रावक श्राविकाओं ने च्दीक्षार्थी अमर रहे, दीक्षार्थी की जय जयकारज्ज् के जयघोष गुंजायमान हो उठे। सभी साधु साध्वियों की उपस्थित में मुनिश्री शालिभद्रजी व साध्वीश्री प्रतिभाश्रीजी ने दीक्षा विधि प्रारंभ की। इस अवसर पर साध्वीश्री डॉ प्रतिभाश्री जी ने दीक्षा के महत्त्व पर प्रकाश डालते हुए कहा कि दीक्षा लेना दो धारी तलवार पर चलने के समान है। संयम के पथ पर आगे ब़ढना कोई हंसी खेल नहीं है और दीक्षार्थी ने इस भगवान के पथ पर आगे ब़ढने का साहसी निर्णय लिया है। साध्वीश्री ने कहा कि दीक्षा लेने वाले व्यक्ति को साधारण व्यक्ति नहीं होते तभी वे दीक्षा ले पाते हैं।साध्वीश्री सुप्रभाजी ने कहा कि दीक्षा लेना रण क्षेत्र में ल़डने के समान है। जिस प्रकार हम युद्ध ल़डने जाने से पहले पूरे अस्त्र शस्त्रों से लैस होते हैं उसी प्रकार आज का भी दिन दीक्षार्थी को संयम के पथ पर आगे ब़ढने के लिए सभी उपकरण दिए जाएंगे ताकि पथ पर आने वाले कषाय रुपी दुश्मनों से डटकर मुकाबला कर सके। फ्ैंद्भद्ब ज्र्‍प्द्म ·र्ैंय् ृद्बल्त्र ब्स्अपनी दीक्षा के मौके पर दीक्षार्थी सोनाली बम्बोरी ने कहा कि मैं भगवान के पथ पर आगे ब़ढने जा रही हूँ और ऐसे पथ में मेरे साथ मेरे गुरु समान गुरुवर व गुरुणी मैया हैं इसलिए मुझे किंचित भी डर नहीं है। उन्होंने कहा कि संयम ग्रहण करने व उस पथ पर आगे ब़ढने के लिए मेरे परिवार का मुझे पूरा साथ मिला। संयम का जीवन में आ जाना उस अमृत के समान है जिसका इंतजार तो सभी देव भी करते हैं। संयम का अर्थ है अनुशासन में रहना, भगवान के लिए, भगवान का होकर, भगवान के साथ रहना है। ृय्ह्वद्बय् ·र्ैंह् झ्ब्घ्य्द्मद्मष्ठ ·र्ैंय्द्बय्ख्श्च ब्स् फ्ैंद्भद्बइस मौके पर उपस्थित दिव्येशचन्द्रजी म.सा. ने कहा कि त्याग मार्ग सर्वोत्तम मार्ग है। जो समय को जान ले वो सच्चा पंडित होता है। दीक्षार्थी ने अपने वर्तमान को पहचान कर वर्धमान बनने के मार्ग पर कदम ब़ढा दिया है। इस संसार में संयम के बिना मुक्ति संभव नहीं है। तेरापथं धर्मसंघ की साध्वीश्री काव्यलताजी ने कहा कि हमने महावीर या वीतराग को तो नहीं देखा है परन्तु त्याग और अहिंसा को पहचाना है। अहिंसा व त्याग की पहचान है संयम जीवन। जिसने संयम जीवन धारण कर लिया उसने महावीर को देखने की ओर एक कदम ब़ढा दिया। साध्वीश्री कंचनप्रभाजी ने कहा कि जब दर्शनीय कर्म का क्षमोक्षयम होता है तब संयम जीवन का उदय होता है। दीक्षार्थी आत्मा को पहचाने के मार्ग पर आरु़ढ हो रही हैं, वह संयम जीवन में वर्धमान व गतिमान बनें ऐसी शुभकामनाएं। प्ष्ठप्रय् झ्यद्यप्त्रश्चद्म ·र्ैंर्‍ ्यप्यथ् ब्रुंश्चदीक्षार्थी विधि के बीच में संसारी वेश व केशों को त्यागकर साधु चोला पहने गई । इस बीच में विभिन्न लाभार्थियों का संघ की ओर से सम्मान किया गया। दीक्षार्थी को भेंट की गई चैन की नीलामी की गई। दीक्षार्थी सोनाली जब केसरिया वेशभूषा का त्यागकर, सिर मुंडाकर शांति का प्रतीक सफेद साधु का चोला पहनकर सभागार में पुन: उपस्थित हुई तो एक बार पुनः पूरा सभागार जय जयकार से गूंज उठा। मुनिश्री शालिभद्रजी ने फिर से नवकार मंत्र के जाप के साथ दीक्षा की मूल विधि प्रारंभ की। उन्होंने कहा कि साधु का जीवन एनआरआई अर्थात नेशनल रियल इंस्टीट्यूट होता है जिसमें हर दिन कुछ न कुछ सीखने को मिलता है। शालिभद्रजी ने विभिन्न मंत्रों के उच्चारण से अतिक्रमण का प्रतिक्रमण, क्षमा याचना, पूर्व में भूलवश भी किए कोई पाप कार्य का प्रायश्चित तथा सभी से मिच्छामी दुक्क़ड किया। विभिन्न संघ व परिवार जनों को दीक्षार्थी को आदर की चादर ओ़ढाई। ख्रर्‍ूय्य्त्र्र्‍श्च द्धद्मर्‍्र द्मप्ख्रर्‍्यूय्त्रय् फ्य्क्प्र्‍वयोवृद्ध साध्वीश्री चन्दनबालाजी, कांतिमुनिजी, नरेशमुनिजी, कपिलमुनिजी ने दीक्षार्थी को मांगलिक सुनाई। नरेशमुनिजी ने दीक्षा के पूर्व दीक्षार्थी के माता-पिता, धर्म परिवार, राजाजीनगर संघ, जैन क्रॉन्फ्रेन्स, मरुधर केसरी गुरु सेवा समिति आदि के पदाधिकारियों तथा उपस्थित श्रावक श्राविकाओं से दीक्षा की आज्ञा लेते हुए दीक्षार्थी सोनाली को दीक्षा का मूल मंत्र, प्रभु महावीर का मंत्र च्करेमि भंतेज्ज् का उच्चारण करते हुए रजोहरण (ओगा) प्रदान किया तथा संसारी सोनाली को साध्वी बना दिया। कांतिमुनिजी व कपिलमुनिजी ने नवदीक्षित साध्वी को काष्ठ पात्र, साध्वीश्री चन्दनबालाजी ने पुंजनी, शालिभद्रजी ने आगम प्रदान कर विधि पूर्ण की। रजोहरण अर्थात साध्वी बनने का सर्टिफिकेट प्राप्त कर नवदीक्षिता खुशी से झूम उठीं। फ्ह्द्मय्ध्र्‍ ·र्ैंह् द्मय्द्ब ्यद्बध्य्फ्य्क्प्र्‍ फ्प्श्चख़्य्य्य्र्‍नवदीक्षिता साध्वीश्री के परिवारजन, धर्म परिवार व संघ की ओर से पहली खोल भरी गई तथा साध्वीश्री प्रतिभाश्रीजी ने अपनी नई शिष्या को गले लगाकर अपने साध्वी परिवार में शामिल कर अपने पाट पर अपने बगल में बैठाया। नरेशमुनिजी ने नवदीक्षिता साध्वीश्री के साधु जीवन के नए नाम का पत्र राजाजीनगर संघ के पदाधिकारियों को सौंपा। पदाधिकारियों ने नवदीक्षिता साध्वी के नए नाम च्साध्वीश्री सर्वज्ञाश्रीजीज्ज् के नाम की घोषणा की। साध्वीश्री चन्दनबालाजी व प्रतिभाश्रीजी ने नवदीक्षिता का सांकेतिक केश लोचन किया। पूरे सभागार में च्नवदीक्षिता अमर रहें.... जय जयकार जयजयकारज्ज् के जयघोष हुए। सभी लोग नई साध्वीश्री के दर्शनार्थ उम़ड प़डे और उनसे सामूहिक रुप से मांगलिक लिया। ृत्झ्ख़्य् फ्ष्ठ फ्प्श्चख़्य् द्धद्मद्मष्ठ·र्ैंर्‍ द्भय्ख़य्य् प्रय्रुर्ङैंइस मौके पर कपिलमुनिजी ने कहा कि मंत्र की शक्ति असीम है और एक मंत्र च्करेमि भंतेज्ज् द्वारा दीक्षार्थी साध्वी बन गई। कपिलमुनिजी ने नवदीक्षिता साध्वीश्री के दृ़ढ संकल्प की भूरि भूरि अनुमोदना करते हुए कहा कि संयम लेना बहुत कठिन कार्य है। भगवत्ता के मार्ग पर जिस उत्साह व जोश से सोनाली ने कदम ब़ढाया है यह जोश व उत्साह उनकी अंतिम सांस तक बरकरार रहना चाहिए। संयम कांटांे से भरा हुआ वीरों का पथ है। कुछ पाने के लिए जीवन में खोना जरुर प़डता है और नवदीक्षिता अल्पज्ञ से सर्वज्ञ बनने के मार्ग पर चल प़डी हैं। आज से उसके जीवन में नाम, कर्म, वृत्ति, प्रवृत्ति व दिनचर्या में परिवर्तन हो जाएगा।मुनिश्री ने सर्वज्ञाश्रीजी को नसीयत देते हुए कहा कि साधु जीवन में कभी भी साम्प्रदायिक मत होना। कांतिमुनिजी ने कहा कि आज आत्मा परमात्मा बनने के मार्ग पर आरु़ढ हो गई है। नवदीक्षिता को ज्ञान, चरित्र व धर्म का पालन करते हुए श्रुत्द्रिरय, चक्षु्द्रिरय, ध्याना्द्रिरय, रसना्द्रिरय, स्पर्श्द्रिरय, काम, क्रोध, लोभ, मान, माया से परे रहने की आदत डाल लेनी चाहिए। फ्द्नर्‍ ·र्ैंह् ्यख्रद्भय् थ़्द्भप्य्ख्र धर्मसभा में राजाजीनगर जैन संघ के अध्यक्ष व दीक्षा आयोजन समिति के संयोजक महावीरचन्द धोका ने सभी उपस्थित जनों का स्वागत किया तथा विभिन्न सहयोगियों, बेंगलूरु के विभिन्न संघों, मंडलों के प्रति आभार व्यक्त किया। सहसंयोजक ज्ञानचन्द लो़ढा ने सभी उपस्थित जनों तथा बाहर गांव से आए मेहमानों व सभी सहयोगियों के प्रति धन्यवाद व्यक्त किया।नरेशमुनिजी ने नवदीक्षिता की ब़डी दीक्षा करवाने का आदेश पुष्करमुनि जैन गुरु सेवा समिति को प्रदान किया। दीक्षा समिति के संयोजक महावीर धोका, सहसंयोजक ज्ञानचन्द लो़ढा, उत्तमचन्द राति़डया, सोहनराज मेहता, शांतिलाल चाणोदिया, जम्बूकुमार दुग़ड, नेमीचन्द दलाल, महावीर मेहता व मिश्रीमल कटारिया सहित कई सदस्यों कार्यक्रम की व्यवस्था संभाली। दीक्षा के बाद राजाजीनगर के सभी पदाधिकारियों व सदस्यों के चेहरे पर खुशी के भाव साफ देखे जा सकते थे। मानो ऐसा लग रहा था कि कई महिनों की उनकी क़डी मेहनत आज सफल हो गई हो।
दीक्षार्थी को रजोहरण प्रदान करते हुए नरेशमुनिजी
दीक्षा विधि में ब़डी संख्या में शामिल हुए श्रावक श्राविकाएं
दीक्षा लेना दो धारी तलवार पर चलने के समान है। संयम के पथ पर आगे बढ़ना कोई हंसी खेल नहीं है और दीक्षार्थी ने इस भगवान के पथ पर आगे बढ़ने का साहसी निर्णय लिया है। साध्वीश्री ने कहा कि दीक्षा लेने वाले व्यक्ति को साधारण व्यक्ति नहीं होते तभी वे दीक्षा ले पाते हैं।

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