18.01.2016 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 18.01.2016
Updated: 05.01.2017

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सुबह में भी लाली है, संध्या में भी लाली है ।
एक जगाती एक सुलाती, कितने अंतर वाली है ॥
बंधन दो प्रकार के होते हैं, एक महाव्रत और अणुव्रतों स्वरुप संयम का बंधन और दूसरा गृहस्थी का बंधन ।
लेकिन दोनों बंधनों में कितना अंतर है । एक बंधन मोक्ष को देने वाला है और दूसरा बंधन असीम संसार में भ्रमण का कारण है ।
महाव्रती महाराजों को अथवा प्रतिमा धारी व्रतियों को कोई सामान्य संसारी जन कहते हैं कि आपने व्यर्थ ही स्वयं को इन व्रत रुपी बंधनों में बाँध रखा है तो वे कहते हैं आपने भी तो अपने को सांसारिक बंधनो में बाँध रखा है ।
संयमी का बंधन सुबह की लाली के समान जगाने वाला है और असंयमी के बंधन संध्या की लाली के समान सुलाने वाले हैं ।
एक बंधन उत्तरोत्तर पुण्य की वृद्धि से परंपरा से मोक्ष का कारण है और एक बंधन पाप वृद्धि का कारण ।

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