24.12.2015 ►TMC ►Terapanth Center News

Published: 24.12.2015
Updated: 04.01.2016

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अदत्तादान से बचे: आचार्य श्री महाश्रमणजी

24.12.2015, निर्मली. तेरापंथ धर्म संघ के ग्यारहवें अधिशास्ता आचार्य श्री महाश्रमणजी ने अपने प्रातःकालीन उद्बोधन में अर्हत वाड्ग्मय के सूत्र को उदघृत करते हुए फरमाया कि जैन धर्म में अठारह पाप बताए गए है। उसमें तीसरा पाप है - अदत्तादान । जो चीज नहीं दी गई है उसको उठा लेना अर्थात चोरी करना। चोरी करना पाप है। 

आचार्य प्रवर ने आगे फरमाया कि प्रेम तब टुटता है जब स्वार्थ की दीवार बीच में आ जाती है। दो मत हो जाते है। संयुक्त परिवार में कठिनाई हो सकती है। लेकिन आपस में दुश्मनी नहीं  होनी चाहिए। एक दुसरे को देखने से गुस्सा आ जाए ऐसी स्थिती नही होनी चाहिए। भाई भाई के बीच में स्वार्थ दीवार के रूप में आ जाती है तो सम्बन्ध विच्छिन्न हो जाते है, प्रेम का घागा टुट जाता है। प्रेम का घागा टुटने के बाद जोड़ना बड़ा मुश्किल है। परिवारो में अन्याय किसी के साथ ना हो, बुरा किसी का ना हो इतना हमें प्रयास करना चाहिए। साधु बन जाने के बाद संसार से सम्बघ नही होता है फिर धर्म सधं का सम्बघ मुख्य होता है। संघीय संबंधों में सबसे मुख्य संबंध गुरू के साथ होता है। हमारे मन में एक संघ के प्रति भी निष्ठा और प्रामणिकता की भावना रहनी चाहिए।

इस अवसर पर तेरापंथ युवक परिषद बालोतरा, हेमन्त बैद, माणकचन्द नाहटा द्वारा गीत प्रस्तुत किया गया। रोनक नाहर, कमला नाहटा, सायर सिंघी ने अपने विचार प्रस्तुत किए। कार्यक्रम का संचालन मुनि श्री दिनेशकुमारजी ने किया।

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अहिंसा यात्रा प्रणेता आचार्य श्री महाश्रमण जी के पावन सान्निध्य में निर्मली(बिहार) हाजरी का वाचन हुआ। कार्यक्रम की मनोरम की झलकियाँ।

24.12.2015
प्रस्तुति > तेरापंथ मीडिया सेंटर
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🌎 आज की प्रेरणा 🌍
प्रवचनकार - आचार्य श्री महाश्रमण
विषय - समुद्र को पार करें नौका से
प्रस्तुति - अमृतवाणी
संप्रसारण - संस्कार चैनल के माध्यम से --
आर्हत वाड्मय में कहा गया है - मानव का शरीर औदारिक शरीर है जो हाड-मांस आदि से बना हुआ है | यह शरीर नौका के समान है, जीव नाविक है और जीवन सागर है | जीव इस नौका के नाविक बन संसार सागर को पार करते हैं |शरीर में मन और वाणी को अपने में समेटे हुए यह शरीर है| इस शरीर रूप नौका में कोई छेद नहीं होना चाहिये| यह नौका निश्छिद्र हो तभी यह संसार के समुद्र से हमें पार पहुंचा सकती है| आश्रव अपने आप में छेद है | जिसके द्वारा पाप कर्म लगे वह आश्रव है | पाप जितने भी हैं वे सारे छेद हैं | कभी कभी झूठ पकड़ में नहीं आता | अपराधी छूट जाते हैं व निरपराधी पकड़ में आ जाते हैं | यह सारा पिछले जन्मों का हिसाब किताब होता है | कर्मों के दरबार में किसी की भी होशियारी नहीं चल सकती, यहाँ न्याय होता है | नौका के छेदों को रोकने के लिए हमें निर्जरा का प्रयोग करना होगा और नौका से समुद्र को पार करने के लिए संवर व तप की अराधना करनी होगी | हमारे जीवन में धर्म आना चाहिए | संत पुरुष नौका में बैठने की प्रेरणा तो देते हैं पर आप पार तभी कर पाओगे जब नौका में बैठोगे| तो हम तप व संवर का आश्रय लेकर इस शरीर की नौका से संसार के सागर को पार करने की चेष्टा करें|
दिनांक - २४ दिसम्बर २०१५, ब्रहस्पतिवार

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