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❖ अष्टानिका पर्व ---ये वर्ष में तीन बार आते है, अष्टानिका पर्व पर सिद्धचक्र विधान विशेष रूप से किया जाता है, इस पर्व पर भगवान की पूजा करने के लिए देव भी नीचे आते हैं, इन दिनों में नंदीश्वर द्वीप की रचना कर विशेष रूप से पूजा अर्चना की जाती है, नंदीश्वर द्वीप में चारों दिशाओं में तेरह तेरह जिन मंदिर हैं। इस प्रकार कुल 52 जिन चैत्यालय है, श्री नन्दीश्वर जिनालय यह वही जिनालय है जिसकी वन्दना सम्यग्-दृष्टि एकभवावतारी सौधर्म इन्द्र अपने परिवार सहित एवं चारों निकाय के देव वर्ष की तीनों आष्टािन्हका पर्व में जाकर निरन्तर 8 दिनों तक पूजन अभिषेक कर अपने जीवन को धन्य बनाते हैं। यह नन्दीश्वर द्वीप जम्बू द्वीप से आठवें स्थान पर स्थित है। अत: वहां पर मनुष्यों का जाना सम्भव नहीं है।
*अष्टान्हिका पर्व से जुडी हुई एक कथा भी है....राजा अपनी सबसे सुंदर और प्रिय पुत्री मैना सुंदरी से बोले, बेटी बताओ तुम किसके भाग्य से जी रही हो, तुम्हें कौन खिला रहा कौन तुम्हारा पालन पोषण कर रहा है। मैना सुंदरी ने कहा कि पिताजी मुझे जो भी मिला है वह मेरा भाग्य है, मैं अपने भाग्य का खाती हूं। कोई किसी को कुछ भी देने वाला नहीं है आप तो निमित्त मात्र हैं। इस पर राजा को गुस्सा आया और उसने मैना सुंदरी के भाग्य को जानने के लिए उसका विवाह एक कोढ़ी भिखारी से कर दिया।
भारतीय संस्कृति और परंपरा का निर्वहन करते हुए मैना सुंदरी ने अपने पिता द्वारा सुझाए गए वर के गले में वरमाला डालती है। यह दृश्य देखकर परिसर में बड़ी संख्या में उपस्थित दर्शकों की आंखों में आंसू बह निकलते हैं। मैना सुंदरी राजमहल से निकलकर पति के साथ जंगल में आ जाती है।
यहां उसे एक जैन मुनि साधना में लीन मिलते हैं। वह मुनिश्री से कर्मों की पूरी बात जानती है और इसका उपाय पूछती है। मुनिश्री कहते हैं कि तुम अष्टान्हिका पर्व के मौके पर श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान करो और भगवान के अभिषेक का जल इन कोढिय़ों पर छिड़कना तो इनका रोग ठीक हो जाएगा। मुनि द्वारा बताए उपाय के अनुसार मैना सुंदरी विधान का आयोजन करती है और फिर कोढ़ी पति श्री पाल का रोग दूर हो जाता है।
इसलिए हुआ था श्रीपाल को कोढ़ मैना सुंदरी ने मुनिश्री से पूछा कि मेरे पति को कोढ़ क्यों हुआ। इस पर मुनिश्री ने बताया कि तुम्हारे पति पूर्व जन्म में राजा थे और यह अपने 700 साथियों के साथ जंगल में आए थे जहां दिगंबर मुनि को देखकर उन्हें कोढ़ी कहा और निंदा की इतना ही नहीं इन्होंने मुनि के ऊपर थूक भी दिया। इसी का फल इस जन्म में इन्हें मिला है और यह सभी कोढ़ी हुए हैं।
यही है महिमा विधान की अष्टान्हिका पर्व के मौके पर मैना सुंदरी ने मुनिश्री द्वारा बताए उपाय के मुताबिक श्री सिद्धचक्र महामंडल विधान भक्तिभाव पूर्वक किया था। जो भी व्यक्ति इस विधान को विधिपूर्वक करता है उसके सभी कर्मों का नाश होता है और वह फिर मोक्ष लक्ष्मी को प्राप्त करता है। यह विधान अष्टान्हिका पर्व के दौरान ही किया जाता है।
यह नन्दीश्वर द्वीप जम्बू द्वीप से आठवें स्थान पर स्थित है। पहले एक द्वीप फिर एक समुद्र, फिर दूसरा द्वीप और फिर समुद्र, फिर तीसरी द्वीप और फिर समुद्र... इस तरह आठवा द्वीप नन्दीश्वर द्वीप है, नन्दीश्वर द्वीप की चोड़ाई एक सो तिरेसठ करोड़ चोरासी लाख करोड़ योजन है, इस नन्दीश्वर द्वीप के चारो दिशाओ में 13-13 पर्वत पर 13-13 मंदिर है तो इस तरह चारो दिशाओ में 13x4=52 मंदिर है, और हर मंदिर में रत्नमयी 108 [108 [एक मंदिर में प्रतिमा] * 52 [कुल मंदिर] = 5 616] पद्मासन में अकृतिम प्रतिमा जी है और हर प्रतिमा जी की लम्बाई 500 धनुष है [1 धनुष = 6 फुट *500x6 = 3000 फुट ]
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❖ जिन प्रतिमा जी के पंचकल्याणक हुए हो ऐसी "जिन प्रतिमा" ही पूज्य होती है लेकिन अगर कोई ऐसी प्रतिमा जी जिसके पंचकल्याणक नहीं हुआ लेकिन उसकी कम से कम 100 साल से पूजा हो रही है तो भी उसमे अब पूज्यता आचुकी है वो भी अब पूज्य है, ऐसा बहुत सी विद्वान् लोगो की किताब में आपको मिल सकता है, क्योकि यहाँ पर बात भावो की आगई है, दूसरी बात सूरी मन्त्र साधु ने दिया या या किसी विद्वान आदि ने लेकिन जो प्रतिमा जी अमेरिका आदि में मंदिर में विराजमान है उनको भी भाव से पूजा करने पर पुण्य होता है और वो लोग बड़े भावो से पूजा करते है "भाव भव नाशिनी" ❖
[नोट - आचार्य/मुनिराज विशेष के सूरी मंत्र आदि देने से [भाव विशुद्धि, चर्या शुद्धी के कारण] प्रतिमा जी में विशेषता आजाती है ऐसा भी देखा गया है क्योकि द्रव्य, क्षेत्र, काल और भावो की विशेष प्रभाव पड़ता ही है..]
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❖ जो भी आत्मा इस पंचमकाल में जन्म लेती है वो मिथ्यादर्शन के साथ ही जन्म लेती है फिर चाहे वो आचार्य कुंद-कुंद स्वामी हो, आचार्य आदिसागर जी, आचार्य शान्तिसागर जी हो, आचार्य विद्यासागर जी, इसलिए साधू का जन्म दिन का उत्सव नहीं मनाया जाता और ये बड़ा ही गंभीर विषय है मिथ्यादर्शन के साथ हो जन्म ले लिया क्या मिथ्यादर्शन के साथ ही मरना चाहोगे? और बाद में जीव सम्यक आदि प्राप्त करलेता है और पूज्य हो सकता है तो दीक्षा दिवस मना सकते हो और वही सच्चा जन्म है जिस दिन मुनि दीक्षा हुई थी! दीक्षा के दिन एक बार आचार्य श्री विद्यासागर जी महाराज ने कहा था "दीक्षा की तिथि याद मत रखो बल्कि याद ये रखो दीक्षा क्यों लो थी और उस दिन क्या भाव थे!!" इसी तरह जन्म की तिथि ये ये याद हो आना चाहिए इतना समय व्यतीत हो गया...जीवन हर समय निकलता जा रहा है....क्या कर रहो! क्या सोच रहे हो! क्या करने का मन में है!
आचार्य श्री यही सन्देश देना चाहते है "जन्म भले ही मिथ्यादर्शन के साथ हुआ लेकिन जीवन जीना ऐसे [साधु चर्या में] और मरण प्राप्त करना वैसे आदर्श [आचार्य शांतिसागर जी आदि महान साधु जैसे]" संसार के समस्त जिनेन्द्र प्रणित धर्मं के पथ पर चलने वाले साधुओ का जीवन निष्कलंक व्यतीत हो और हम भी उनके पथ पर चले...और भावना भाए "हम भी तो निर्वाण की भूमि, तेरे पथ-चिन्हों से पाएंगे....." जय वीतराग धर्म की, जय हो राग द्वेष रहित भाव की, जय हो अहिंसा परमो धर्म की, जय हो रत्न-त्रय से विभूषित आत्मतत्व की, जय हो!!
मुनि श्री सुधासागर जी मुनिराज के प्रवचनों से Inspired [आचार्य श्री के शिष्य]
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❖ Happie New Year 2542th! Bhagwan Mahavir Swami Moksha Kalyanak..
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