03.11.2015 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 04.11.2015
Updated: 05.01.2017

News in Hindi

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✿ मन में लागी लगन, आया तेरी शरण नेमी प्यारे... मेटो मेटो जी संकट हमारे...
सहस्त्र नाम है भगवान् तेरे, गिरनारी बाबा बसों दिल में मेरे,
दुःख मेरा हरो, आशा पूरी करो, गिरनार जी वाले... तेरे चरणों में हम आये प्रभु प्यारे...

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✿ "बाहुबली-स्वामी-स्तुति" ✿ one of my fav @ @

बाहुबली स्वामि, जगके नी स्वामि ॥
शान्तिय मुरुतिये, नमिपेवु अनुदिनवु॥बाहुबली॥
आदिनाथ-कुवरा,भरतन सोदरा ।
सोदरन गेद्देयल्ला,राज्यवन्ने कोटेयल्ला॥1॥
नोडे नी किरियव,आदे नी हिरियव ।
विवेक निन्नदागे,ताळमेय बाळागे॥2॥
शान्तिय वदना,कान्तिय निलवु ।
विश्वके आदर्शा,निन्नय दर्शनवु ॥3॥
बेळगुळ राजा,अगणित तेजा।
अरळिद कमलगळा, निन्नय पदयुगला ॥4॥

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✿ प्रश्न - क्या बाहुबली भगवान के शल्य थी?

उत्तर - शल्य नहीं थी, क्योंकि शल्य सहित मुनि के मन:पर्ययज्ञान व ऋद्धियाँ नहीं हो सकती हैं। बाहुबली स्वामी ध्यान में लीन थे, वे भावलिंगी मुनि थे, आदिपुराण भाग-२, पृ. २१३ से लेकर पृ.२१७ तक उनके ऋद्धियों का वर्णन है। हाँ, उनके किंचित् विकल्प कभी-कभी हो जाता था कि मेरे भाई को मुझसे क्लेश हो गया अत: यह सौहार्द भाव मन में आ जाता था, यही कारण है उनके निर्विकल्परूप शुक्लध्यान नहीं हो पाया था। श्री भरत के आते ही तथा निर्विकल्प ध्यान होते ही उन्हें केवलज्ञान प्रगट हो गया था।

-श्लोक-

संक्लिष्टो भरताधीश: सोऽस्मत्त इति यत्किल।

हृदस्य हार्दं तेनासीत् तत्पूजाऽपेक्षि केवलम्।।१८६।।
अर्थ - वह भरतेश्वर मुझसे संक्लेश को प्राप्त हुआ है अर्थात् मेरे निमित्त से उसे दुख पहुँचा है यह विचार बाहुबली के हृदय में विद्यमान रहता था, इसलिए केवलज्ञान ने भरत की पूजा की अपेक्षा की थी। अर्थात् उनके हृदय में भाई भरत के प्रति सौहार्द-स्नेहभाव आ जाता था।

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