13.10.2015 ►Acharya Shri VidyaSagar Ji Maharaj ke bhakt ►News

Published: 14.10.2015
Updated: 05.01.2017

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सभी को जय जिनेन्द्र
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आज समपूर्ण पर्यवरण में प्रदुषण फैल चुका है लोगों की जवानी व्यासनो में और बुढ़ापा डॉक्टर की फीस चुकाने में चली जाती है इसका समाधान वर्तमान योग में जाने के लिए सुने
🎥 13/10 को जिनवाणी channel पर प्रसारित क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी के व्यसन मुक्ति के उपाय और सवास्थ्य संबंधित प्रवचन सुनिये।🙏😊💫
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Kshullaka Sri DhyanaSagara today preaching @ Youtube: Watch "Agam Dhara Kshullak Shree 105 Dhyansagarji Maharaj 13 oct 2015" on YouTube - https://youtu.be/ajJO-fZ_sAA
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अब सुनिए और देखिये आचार्य गुरु विद्यासागरजी के परम प्रभावक शिष्य संस्कृत के प्रकाण्ड विद्वान् मधुर वाणी के धारी जिनवाणी पुत्र क्षुल्लक श्री ध्यान सागर जी महाराज के उपदेशों की श्रृंखला -

🔶"आगम-धारा"🔶

प्रतिदिन रात्रि 9 बजे जिनवाणी चैनल पर:
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❖ ❖ अरे ओह, मांस के खाने वालो, क्या तुमको ये भी भान नहीं! मुर्दे कहा दफ़न होते है, पेट कोई कब्रिस्तान नहीं!! ❖

धन सात समंदर पार से लाये, है कौन सी ऐसी लाचारी,सोने कि चिड़िया भारत को बनना पड़ा मांस का व्यापारी!
मांस अंश है माँ का मत खा, ये कोई मेवा या मिस्ठान नहीं,
मुर्दे कहा दफ़न होते है, पेट कोई कब्रिस्तान नहीं!!

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❖ ❖ ज्ञान से आत्मा के गुण की पहचान --- सरस्वती की पूजा का गूढ़ अर्थ है 'स्व' की पूजा --- शब्दों की पूजा से ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती

निरंतर ज्ञान का उपयोग करना ही 'अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग' कहलाता है। आत्मा के अनंत गुण हैं और उनके कार्य भी अलग हैं। ज्ञान-गुण इन सभी की पहचान कराता है। 'सुख' आत्मा का एक गुण है। उसकी अनुभूति भी ज्ञान के माध्यम से ही संभव है। ज्ञान ही वह गुण है, जिसकी सहायता से पाषाण में से स्वर्ग को, खान में से हीरे, पन्ना आदि को पृथक किया जा सकता है। अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग ही वह साधन है, जिसके माध्यम से आत्मा की अनुभूति और समुन्नति होती है।

उपयोग का दूसरा अर्थ है, 'चेतना' अर्थात अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग अपनी खोज चेतना की उपलब्धि का अमोघ साधन है। इसके माध्यम से जीव अपनी असली संपत्ति को बढ़ाता है, उसे प्राप्त करता है, उसके पास पहुंचता है। यह केवल पुस्तकीय ज्ञान नहीं है। शब्दों की पूजा से ज्ञान की प्राप्ति नहीं होती। सरस्वती की पूजा का अर्थ स्व की पूजा है, आत्मा की उपासना है। अक्षर ज्ञानधारी बहुभाषाविद् पंडित नहीं है। वास्तविक पंडित तो वह है, जो अपनी आत्मा का अवलोकन करता है। आचार्य प्रवर ने विषय की मीमांसा करते हुए कहा, शब्द तो केवल माध्यम है, अपनी आत्मा को जानने के लिए, अंदर आने के लिए। किंतु हमारी दशा उस पंडित की तरह है, जो तैरने के सिद्धांत की व्याख्या तो कर सकता है, लेकिन जिसे तैरना नहीं आता। केवल व्याख्या नहीं, तैरना आना भी चाहिए।

शुद्धोपयोग की यह स्थिति इसी अभीक्ष्ण ज्ञानोपयोग के माध्यम से ही प्राप्त हो सकती है। ज्ञान का निरंतर उपयोग स्वयं को शुद्ध बनाने के लिए करना परम श्रेयस्कर होता है। ध्यान दें, हम अमूर्त हैं, हमें छुआ नहीं जा सकता, चखा नहीं जा सकता, सूंघा नहीं जा सकता, इसके बाद भी हम मूर्त बने हुए हैं। इसका कारण स्पष्ट करते हुए आचार्य प्रवर ने कहा, क्योंकि हमारा ज्ञान मूर्त में संजोया हुआ है। अपनी उस अमूर्त स्वरूप की उपलब्धि, ज्ञान की धारा को अंदर आत्मा की ओर मोडऩे पर ही संभव है।

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❖ जब रावण का अंत समय आगया था तो श्री राम लक्ष्मण से बोलते है जाओ रावण के पास जाओ और उसने कुछ उपदेश ग्रहण करो तब लक्ष्मण जाते और रावण को बोलते है मेरे बड़े भैया ने बोला है की आपसे कोई उपदेश ले तो आप मुझे उपदेश दीजिये तो रावण कोई उत्तर नहीं देते तो लक्ष्मण वापस आजाते है और राम पूछते है कोई उपदेश नहीं लिया तब राम पूछते है तुम कहा खड़े थे..लक्षमण बोलते है रावण के सर की तरफ तो राम बोलते है जिससे शिक्षा लेनी होती है उनके चरणों में खड़ा होना पड़ता है....और जाओ उनसे उपदेश ग्रहण करो..फिर रावण राम से क्षमा याचना करते है और लक्ष्मण को जीवन के अनमोल सूत्र बताते है...

❖ राम कथा सुनिए -क्षुल्लक श्री ध्यानसागर जी मुनिराज की आवाज में, हिम्मत नगर, गुजरात में हुए प्रवचन की रिकॉर्डिंग - और जानिया भगवान् राम, हनुमान, सीता लक्स्मान आदि महापुरुष के जीवन को एक अलग अंदाज़ में... http://files.jain.us.com/shrish/1.Pravachan/Kshullak%20Shree%20DhyanSagar%20Maharaj%20Ji/Story_Ram_Katha_Himmatnagar/ [ link for download, to download every file, click right and thn click 'save target as' to download ]

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