26.09.2015 ►Muni Saurabh Sagar Ji Maharaj ►News

Published: 28.09.2015
Updated: 18.11.2015

News in Hindi

Source: © Facebook

by Ashok Jain
26-09-2014
उत्तम आकिंचन
दशलक्षण धर्म के नवें दिन जैन मंदिर केसरिया रंग में डूबा नजर आया। महिला, पुरुष व बच्चे सभी केसरिया वस्त्रों में जिनेंद्र देव की अर्चना करने मंदिर में उपस्थित हुए। सभी ने सामूहिक रूप से अभिषेक शांतिधारा व पूजन किया।

इस अवसर पर मुनि सौरभ सागर ने कहा कि आज का दिन उत्तम आकिंचन का है। आकिंचन का अर्थ सभी प्रकार के परिग्रहों का त्याग। आज का दिन सहित से रहित होने का है। संपूर्ण से रिक्त होने का है। अभी तक आठ दिनों में आपने अपनी क्षमा, मार्दव, आर्जव, तप, त्याग, सत्य का बोध किया। बुराई से अच्छाई की ओर गए। अब आज का दिन उस अच्छाई को त्यागने को कहता है। पाप और पुण्य, सुख और दु:ख, राग व द्वेष, क्रोध व प्रेम सभी को एक समान रूप से छोड़ना होगा। तभी तेरी साधना सफल होगी। रंच मात्र की भी सोच तुम्हें मोक्ष मार्ग से भटका देगी।

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by Ashok Jain
25-09-2014
उत्तम त्याग
मुनि श्री सौरभ सागर महाराज ने कहा कि आज का दिन उत्तम त्याग का दिन है, हे जीवन तूने इस संसार से बहुत कुछ बटोरा है। बहुत सारी वस्तुओं का संग्रह किया है। वैभव का अंबार लगा लिया। अब उसे छोड़ने का समय है। त्याग देने का समय है। क्यों कि त्याग के अभाव में किसी भी प्राणी का जीवन चल नहीं सकता है। क्यों कि त्याग की भावना के बगैर ग्रहण करने का भाव भी उत्पन्न नहीं होगा। जिस प्रकाश वृक्ष फलों का वायु आक्सीजन का, सूर्य किरणों का, चांद चांदनी का त्याग ना करे तो मानव जीवन समाप्त हो जाएगा। क्यों कि जब कोई एक त्याग करता है तो वह स्वयं तो लाभान्वित होता ही है दूसरा भी उसे स्वत: लाभान्वित हो जाता है। आदान प्रदान प्रकृति का नियम है, बाहर की वस्तुओं का त्याग तुम्हे अनमोल बनाएंगे। लेकिन भीतर के विकारों का त्याग तुम्हारी आत्मा को सुरक्षित करेंगे।
मुनि श्री ने कहा कि त्याग का एक रूप दान है। दान हमेशा अच्छी वस्तु का होता है। और त्याग खराब वस्तु का। सांसारिक जीवन में चार प्रकार का दान महत्वपूर्ण है।

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Saurabh Sagar Ji Maharaj
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