Posted on 06.06.2020 08:33
🪔🪔🪔🪔🙏🌸🙏🪔🪔🪔🪔जैन परंपरा में सृजित प्रभावक स्तोत्रों एवं स्तुति-काव्यों में से एक है *भगवान पार्श्वनाथ* की स्तुति में आचार्य सिद्धसेन दिवाकर द्वारा रचित *कल्याण मंदिर स्तोत्र*। जो जैन धर्म की दोनों धाराओं— दिगंबर और श्वेतांबर में श्रद्धेय है। *कल्याण मंदिर स्तोत्र* पर प्रदत्त आचार्यश्री महाप्रज्ञ के प्रवचनों से प्रतिपादित अनुभूत तथ्यों व भक्त से भगवान बनने के रहस्य सूत्रों का दिशासूचक यंत्र है... आचार्यश्री महाप्रज्ञ की कृति...
🔱 *कल्याण मंदिर - अंतस्तल का स्पर्श* 🔱
🕉️ *श्रृंखला ~ 59* 🕉️
*19. तब बनता है अशोक*
गतांक से आगे...
आचार्य इस बात का उदाहरण के द्वारा समर्थन कर रहे हैं। सूर्योदय होते ही सब जग जाते हैं। केवल प्राणी-जगत् ही नहीं, मनुष्य-जगत् ही नहीं, वनस्पति जगत् भी जाग्रत् हो जाता है। जो मुरझाए हुए, कुम्हलाए हुए पत्र-पुष्प होते हैं, वे भी विकस्वर बन जाते हैं।
यह बात आचार्य ने जिस युग में लिखी उस समय यह सचाई जीवनगत थी। आज तो सूर्योदय होने पर भी आदमी कहां जागता है?
बेटा सो रहा था। मां आई और बोली— 'बेटा! देख सूरज कितना चढ़ गया है? सूरज चढ़े तीन घंटा हो गए, अभी भी तू नहीं उठ रहा है।'
बेटा— 'मां! कैसी बात कर रही हो? सूरज तो शाम को ही सो जाता है, मैं तो रात को बारह बजे सोता हूं।'
आज मनोदशा बदल गई, जीवन शैली और जीवन चर्या बदल गई। जो समय सोने का है, वह अब जागने का है। जो समय जागने का है वह अब सोने का हो गया। दिन का समय सोने का नहीं होता। एक आदमी दिन में दस-बीस मिनट झपकी ले, वह तो ठीक है। पर तीन घंटा खूंटी तानकर सो जाए तो क्या वह उचित रहेगा? दिन में सोने का मतलब है— बीमारियों को निमंत्रण देना। जो व्यक्ति दिन में ज्यादा सोता है वह बीमारियों को बुलाता है। गर्मी के दिनों में तो फिर भी कुछ समय सोना उचित हो सकता है किन्तु सर्दी में तो दिन में सोने का मतलब ही है— बीमारियों को जान-बूझकर बुलाना। यह जागरण का समय है।
आचार्य ने लिखा— सूर्योदय होता है तो सब जाग जाते हैं। मनुष्य ही नहीं, वनस्पति-जगत् भी जाग जाता है, विकस्वर हो जाता है। फिर प्रभो! आपकी देशना सुनकर शोक की चेतना समाप्त हो जाए, अशोक की चेतना जाग जाए, इसमें कोई आश्चर्य की बात नहीं है।
एक बहुत बड़ा सूत्र दिया है— अशोक बनना है और शोकमुक्त जीवन जीना है तो वीतराग का सान्निध्य प्राप्त करो, वीतराग का चिन्तन करो। वीतराग का चिन्तन करोगे तो शोक समाप्त हो जाएगा। राग का चिन्तन करोगे तो शोक बढ़ जाएगा, दुगुना हो जाएगा। वीतरागता के सिवाय अशोक बनने का कोई उपाय नहीं है। जब तक ममत्व का बंधन है, राग है तब तक व्यक्ति अशोक नहीं हो सकता।
हमने ऐसे लोगों को देखा है जो सम्पत्ति के चले जाने पर वर्षों तक रोते रहे हैं और किसी प्रिय व्यक्ति के चले जाने पर जीवन भर रोते रहते हैं। क्योंकि उनमें शोक प्रबल है, मोह प्रबल है, वीतरागता नहीं है। जो व्यक्ति वीतरागता की साधना करता है, वह वियोग होने पर सोचता है कि बस नियति का योग था, ऐसा हो गया। इसके आगे कुछ नहीं करता। ऐसे धार्मिक लोगों को भी देखा है जिनका प्रिय और काम करने वाला पुत्र चला गया, पर वे शोक-संतप्त नहीं हुए। उन्होंने उस वियोग को सहा, यह कहते हुए भुलाया— हमारा इतना ही योग था। अपने काम में लग गए।
मोह-कर्म की अनेक प्रकृतियां बतलाई गई हैं। उनमें शोक भी एक प्रकृति है, जो आदमी को दुःखी बनाती है। इसीलिए सैकड़ों-सैकड़ों परिवार शोक-निवारण और अशोक बनने के लिए धर्मगुरु की सन्निधि में आते हैं, अपनी व्यथा सुनाते हैं, कुछ हलके हो जाते हैं। उन्हें आध्यात्मिक संबल मिलता है। शोक अशोक में परिणत हो जाता है। तीर्थकर की तो बात ही क्या!
अशोक बनने का एक उपाय बतलाया गया है— वीतराग की सन्निधि में जाओ, वीतरागता को प्राप्त करो। रागात्मक जगत् में भटकते रहे तो तुम्हारा शोक कभी समाप्त नहीं होगा। राग-विलय की दिशा में प्रस्थान करो, अशोक बनने का मंत्र उपलब्ध हो जाएगा।
*आचार्य सिद्धसेन बंधन-मुक्ति को तीर्थंकर के दूसरे प्रतिहार्य... सुर पुष्प-वृष्टि के माध्यम से कैसे समझा रहे हैं...?* जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 302* 📜
*श्रीमद् जयाचार्य*
*महान् योजनाएं*
*4. श्रम का सम विभाजन*
*1. समुच्चय के कार्य*
*चोकी*
संतों का कोई भी वस्त्र-पात्र आदि उपकरण रात्रि में बाहर 'अछायां' में न रहने पाये तथा बिना प्रतिलेखन न रहने पाये, इसी सावधानी के लिए प्रतिदिन एक संत प्रातः प्रतिलेखन का समय आते ही तथा सायं सूर्यास्त होते ही उन सभी स्थानों को, जहां संतों का निवास होता है तथा धोने आदि के लिए जाना-आना होता है, धूम-फिर कर देख लेता है। कोई वस्त्र-खण्ड या अन्य कोई विस्मृत वस्तु बाहर रह गई हो अथवा कोई वस्तु बिना अवेर के यों ही इधर-उधर पड़ी हो तो उन सबको वह उठा लाता है। यह उनका प्रतिलेखन तो कर ही लेता है, पर साथ ही जिन पर नाम लिखा हो, उन्हें उन तक पहुंचा देने तथा अन्य वस्तुओं को सबके पास जाकर दिखा आने का भार भी वही उठाता है। विस्मृति के कारण जो छोटे वस्त्र-खण्ड बच जाते हैं, आचार्यश्री को बताकर उनका परिष्ठापन कर देना भी उसी का कार्य होता है। इस कार्य को 'चोकी' कहा जाता
*परिष्ठापन-कार्य*
रात्रि-काल में परिष्ठापन कार्य भी बारी से होता है। इसकी अपनी विशेष प्रकार की व्यवस्थाएं हैं, जो शीतकाल आदि में सभी के लिए सुविधा का कारण बनती हैं।
*बाजोटों का काम*
आचार्यश्री के व्याख्यान देने, विराजने और शयन करने आदि के लिए जहां-जहां बाजोट या पट्ट आदि के बिछाने की आवश्यकता होती है, उसका भार बारी के क्रम से एक व्यक्ति पर होता है। आचार्यश्री जहां पधारें, वहां उनका आसन ले जाकर बिछाना, आवश्यकतावश उनके उपकरणों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना तथा पट्ट आदि का प्रतिलेखन करना भी उसी कार्य के अंग होते हैं।
*साझ के विभिन्न कार्यों...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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शासन गौरव मुनिश्री बुद्धमल्लजी की कृति वैचारिक उदारता, समन्वयशीलता, आचार-निष्ठा और अनुशासन की साकार प्रतिमा "तेरापंथ का इतिहास" जिसमें सेवा, समर्पण और संगठन की जीवन-गाथा है। श्रद्धा, विनय तथा वात्सल्य की प्रवाहमान त्रिवेणी है।
🌞 *तेरापंथ का इतिहास* 🌞
📜 *श्रृंखला -- 302* 📜
*श्रीमद् जयाचार्य*
*महान् योजनाएं*
*4. श्रम का सम विभाजन*
*1. समुच्चय के कार्य*
*चोकी*
संतों का कोई भी वस्त्र-पात्र आदि उपकरण रात्रि में बाहर 'अछायां' में न रहने पाये तथा बिना प्रतिलेखन न रहने पाये, इसी सावधानी के लिए प्रतिदिन एक संत प्रातः प्रतिलेखन का समय आते ही तथा सायं सूर्यास्त होते ही उन सभी स्थानों को, जहां संतों का निवास होता है तथा धोने आदि के लिए जाना-आना होता है, धूम-फिर कर देख लेता है। कोई वस्त्र-खण्ड या अन्य कोई विस्मृत वस्तु बाहर रह गई हो अथवा कोई वस्तु बिना अवेर के यों ही इधर-उधर पड़ी हो तो उन सबको वह उठा लाता है। यह उनका प्रतिलेखन तो कर ही लेता है, पर साथ ही जिन पर नाम लिखा हो, उन्हें उन तक पहुंचा देने तथा अन्य वस्तुओं को सबके पास जाकर दिखा आने का भार भी वही उठाता है। विस्मृति के कारण जो छोटे वस्त्र-खण्ड बच जाते हैं, आचार्यश्री को बताकर उनका परिष्ठापन कर देना भी उसी का कार्य होता है। इस कार्य को 'चोकी' कहा जाता
*परिष्ठापन-कार्य*
रात्रि-काल में परिष्ठापन कार्य भी बारी से होता है। इसकी अपनी विशेष प्रकार की व्यवस्थाएं हैं, जो शीतकाल आदि में सभी के लिए सुविधा का कारण बनती हैं।
*बाजोटों का काम*
आचार्यश्री के व्याख्यान देने, विराजने और शयन करने आदि के लिए जहां-जहां बाजोट या पट्ट आदि के बिछाने की आवश्यकता होती है, उसका भार बारी के क्रम से एक व्यक्ति पर होता है। आचार्यश्री जहां पधारें, वहां उनका आसन ले जाकर बिछाना, आवश्यकतावश उनके उपकरणों को एक स्थान से दूसरे स्थान पर ले जाना तथा पट्ट आदि का प्रतिलेखन करना भी उसी कार्य के अंग होते हैं।
*साझ के विभिन्न कार्यों...* के बारे में जानेंगे... और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...
प्रस्तुति-- 🌻 संघ संवाद 🌻
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🙏🏻 *पूज्य गुरुदेव के सुख संवाद* 🙏🏻
6 जून। परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी भोसगा से करीब 16.4 कि.मी. का प्रलम्ब विहार कर येली, उस्मानाबाद में स्थित श्री भाऊसाहेब बिराजदार स्मारक विद्यालय में सानंद सुखसातापूर्वक पधार गए हैं।
विस्तृत रिपोर्ट शाम तक जारी होने वाली *तेरापंथ विज्ञप्ति* में दी जा सकेगी।
🙏🏻
*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा*
*🌻 संघ संवाद* 🌻
6 जून। परम पूज्य आचार्य श्री महाश्रमणजी भोसगा से करीब 16.4 कि.मी. का प्रलम्ब विहार कर येली, उस्मानाबाद में स्थित श्री भाऊसाहेब बिराजदार स्मारक विद्यालय में सानंद सुखसातापूर्वक पधार गए हैं।
विस्तृत रिपोर्ट शाम तक जारी होने वाली *तेरापंथ विज्ञप्ति* में दी जा सकेगी।
🙏🏻
*सूचना एवं प्रसारण विभाग*
*जैन श्वेतांबर तेरापंथी महासभा*
*🌻 संघ संवाद* 🌻
🛐 *"चौबीसी" क्रमांक* : ९
🔊 *"सुविधिनाथ स्तवन"*
https://youtu.be/Ov14HZ79H7M
🙏 *रचना : श्रीमद जयाचार्य*
🎙️ *स्वर : श्रीमती बबिता गुनेचा, कोयम्बटूर*
संप्रसारक :
https://www.youtube.com/channel/UC0dyEH1ZPzOwv9QIdvfMjcQ
🌻 *संघ संवाद* 🌻
🔊 *"सुविधिनाथ स्तवन"*
https://youtu.be/Ov14HZ79H7M
🙏 *रचना : श्रीमद जयाचार्य*
🎙️ *स्वर : श्रीमती बबिता गुनेचा, कोयम्बटूर*
संप्रसारक :
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🌻 *संघ संवाद* 🌻
रचना : श्रीमद जयाचार्य स्वर : श्रीमती बबिता गुनेचा, कोयम्बटूर संप्रसारक : https://www.youtube.com/channel/UC0dyEH1ZPzOwv9QIdvfMjcQ 🌻 *संघ संवाद* 🌻
🧘♂ *प्रेक्षा ध्यान के रहस्य* 🧘♂
🙏 #आचार्य श्री #महाप्रज्ञ जी द्वारा प्रदत मौलिक #प्रवचन
👉 *#आत्म शोधन के सूत्र* : *श्रृंखला १*
एक #प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लें।
देखें, जीवन बदल जायेगा, जीने का दृष्टिकोण बदल जायेगा।
प्रकाशक
#Preksha #Foundation
Helpline No. 8233344482
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