30.11.2018 ►SS ►Sangh Samvad News

Published: 30.11.2018
Updated: 03.12.2018

Update

👉 बठिण्डा - श्रावक सम्मेलन का आयोजन
👉 सिलीगुड़ी - सम्मान समारोह का आयोजन
👉 इरोड - connection with relation सास बहू कार्यशाला
👉 साउथ कोलकाता - तेरापंथ महिला मंडल द्वारा सास बहु सम्मेलन का आयोजन
👉 भिलवाड़ा - तेरापंथ महिला मंडल द्वारा सास बहु सम्मेलन का आयोजन
👉 राजराजेश्वरीनगर, बेंगलुरु - सास-बहू सम्मेलन का आयोजन
👉 दक्षिण हावड़ा - तेरापंथ महिला मंडल द्वारा सास बहु सम्मेलन का आयोजन
👉 विजयनगर, बेंगलुरु - निशुल्क मधुमेह जांच शिविर का आयोजन
👉 पूर्वांचल, कोलकाता - सास बहू सम्मेलन का आयोजन
👉 बेहाला (कोलकाता) - तेरापंथ महिला मंडल द्वारा सास बहू सम्मेलन का आयोजन
👉 विशाखापट्टनम - WE CONNECT Connection with relation कार्यशाला आयोजित

प्रस्तुति: 🌻 *संघ संवाद* 🌻

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👉 प्रेरणा पाथेय:- आचार्य श्री महाश्रमणजी
वीडियो - 30 नवम्बर 2018

प्रस्तुति ~ अमृतवाणी
सम्प्रसारक 🌻 *संघ संवाद* 🌻

News in Hindi

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👉 *आचार्य श्री महाप्रज्ञ जी* द्वारा प्रदत प्रवचन का विडियो:
*रोग को दबाये नहीं: वीडियो श्रंखला ३*

एक *प्रेक्षाध्यान शिविर में भाग लेकर देखें*
आपका *जीवन बदल जायेगा* जीवन का *दृष्टिकोण बदल जायेगा*

प्रकाशक
*Preksha Foundation*
Helpline No. 8233344482

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👉 प्रेक्षा ध्यान के रहस्य - आचार्य महाप्रज्ञ
*स्वास्थ्य*

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य* 📙

📝 *श्रंखला -- 482* 📝

*भवाब्धिपोत आचार्य भारमल*
*और*
*आचार्य रायचंद*

तेरापंथ धर्म संघ के द्वितीय आचार्य भारमलजी एवं तृतीय आचार्य रायचंदजी थे। इन दोनों आचार्यों को तेरापंथ धर्म संघ के आद्य प्रवर्तक आचार्य भिक्षु का सान्निध्य प्राप्त हुआ। आचार्य भारमलजी आचार्य भिक्षु की धर्मक्रांति में साथ थे। आचार्य रायचंदजी आचार्य भिक्षु के स्वर्गवास के समय बाल मुनि थे। इन दोनों आचार्यों ने विविध अध्यात्म प्रवृत्तियों से तेरापंथ धर्म संघ की नींव को सुदृढ़ किया तथा जैन धर्म को विस्तार दिया।

*गुरु-परंपरा*

आचार्य भारमलजी एवं आचार्य रायचंदजी दोनों के दीक्षा गुरु आचार्य भिक्षु थे। आचार्य भारमलजी आचार्य भिक्षु के उत्तराधिकारी थे एवं आचार्य रायचंदजी आचार्य भारमलजी के उत्तराधिकारी थे। इन दोनों आचार्यों की गुरु-परंपरा आचार्य भिक्षु से प्रारंभ होती है।

*जन्म एवं परिवार*

आचार्य भारमलजी एवं आचार्य रायचंदजी दोनों की जन्मभूमि मेवाड़ है। आचार्य भारमलजी का जन्म मुहाग्राम (राजस्थान) में ओसवाल वंश के लोढ़ा परिवार में वीर निर्वाण 2274 (विक्रम संवत् 1804) में हुआ। आपके पिता का नाम किशनोजी तथा माता का नाम धारिणी था।

आचार्य रायचंदजी का जन्म रावलिया (राजस्थान) ग्राम में वीर निर्वाण 2317 (विक्रम संवत् 1847) में हुआ। उनके पिता का नाम चतरोजी एवं माता का नाम कुशलांजी था।

*जीवन-वृत्त*

आचार्य भारमलजी बचपन से सरल एवं विनम्र प्रकृति के थे। धार्मिक रुचि उनमें सहज थी। वे जब दस वर्ष के थे तभी उनके मन में मुनि बनने की भावना जागृत हुई। पुत्र की वैराग्य भावना से पिता के विचारों में भी परिवर्तन आया। वे भी दीक्षा लेने के उत्सुक बने। भाग्य से कभी-कभी चाह के अनुसार राह मिल जाती है। पिता-पुत्र दोनों संत को भीखणजी की उपासना का योग मिला। संतों के सान्निध्य से उनकी वैराग्य भावना ने बल पकड़ा। विचार संकल्प में परिवर्तित हो गए। दोनों ने आचार्य भिक्षु के पास स्थानकवासी परंपरा में संयम दीक्षा ग्रहण की।

संयमी जीवन में मुनि भारमलजी ने आगमों का गहन अध्ययन प्रारंभ किया। विचार भेद के कारण संत भीखणजी जब स्थानकवासी परंपरा से अलग हुए तब उन्होंने धर्मक्रांति का बिगुल बजाया। उस समय मुनि किशनोजी एवं भारमलजी आचार्य भिक्षु के साथ थे।

*आचार्य भारमलजी की आचार्य भिक्षु के प्रति अनन्य भक्ति, निश्चलता व स्वाध्याय प्रियता* के बारे में पढ़ेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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अध्यात्म के प्रकाश के संरक्षण एवं संवर्धन में योगभूत तेरापंथ धर्मसंघ के जागरूक श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

🛡 *'प्रकाश के प्रहरी'* 🛡

📜 *श्रंखला -- 136* 📜

*किसनरामजी सेठिया*

*प्रथम व्यक्ति*

उदासर निवासी किसनरामजी सेठिया का जन्म संवत् 1920 में तखतरामजी के पुत्र के रूप में हुआ। वहां के प्रायः सभी ओसवाल परिवार मंदिरमार्गी थे। यद्यपि उदासर बीकानेर के बहुत समीप है, तथापि तेरापंथ के साधु-साध्वियों का लंबे समय तक उधर विहार नहीं हुआ। किसनरामजी धार्मिक प्रकृति के व्यक्ति थे। उनकी धार्मिक जिज्ञासा बड़ी प्रबल थी। वे जब कभी बीकानेर-गंगाशहर की तरफ जाते तब अवसर निकालकर तेरापंथ के साधु-साध्वियों के पास अवश्य जाते और धर्म-चर्चा करते। अनेक बार की चर्चाओं के पश्चात् जब तत्त्व-श्रद्धा उनको हृदयंगम हो गई तब अविलंब उन्होंने गुरुधारणा कर ली। उदासर में तेरापंथी बनने वाले वे प्रथम व्यक्ति थे।

गुरु धारणा कर लेने के पश्चात् किसनरामजी का प्रयास साधु-साध्वियों को अपने क्षेत्र में ले जाने के लिए चलने लगा। फलतः संवत् 1848 में मुनि पृथ्वीराजजी सर्वप्रथम वहां पधारे। उनकी प्रेरणा से तत्रस्थ अनेक लोगों ने तेरापंथ की आम्नाय को ग्रहण किया।

*पगड़ी और चातुर्मास*

किसनरामजी अपनी धुन के बड़े पक्के थे। जिस काम को करने की ठानते उसे पूरा कर लेने पर ही उन्हें संतोष होता। उनकी भावना थी कि उदासर में चातुर्मास होना चाहिए। आचार्य डालगणी के सम्मुख उन्होंने अपनी भावना रखी और चातुर्मास प्राप्त करने का प्रयास किया। आचार्यश्री ने 'ध्यान में है' कह कर उस बात को टाल दिया। यों प्रतिवर्ष प्रार्थना होती रही और आचार्यश्री द्वारा टाली जाती रही। आखिर उन्होंने संवत् 1965 में एक प्रतिज्ञा की कि जब तक उदासर में चातुर्मास नहीं होगा तब तक वे अपने सिर पर रंगीन पगड़ी नहीं बांधेंगे। उसी दिन से वे सफेद पगड़ी बांधने लगे। रंग बिना की पगड़ी को राजस्थान में 'पोतिया' कहा जाता है और वह शोक सूचक माना जाता है। उन्हें जब कोई उक्त पगड़ी के विषय में पूछता तो वे कहते कि उदासर में इतने श्रावक-श्राविकाओं के होते हुए भी जब आचार्यश्री वहां चातुर्मास नहीं करवाते तो यह हम लोगों के लिए शोक की ही बात है।

संवत 1968 में वे आचार्य श्री कालूगणी के दर्शन हेतु सरदारशहर गए। एक दिन वहां के सुप्रसिद्ध श्रावक बालचंदजी सेठिया ने उनसे सफेद पगड़ी के विषय में पूछ लिया कि क्या बात है, आपने यह सफेद पगड़ी क्यों धारण कर रखी है?

किसनरामजी ने अपनी प्रतिज्ञा की बात बताते हुए कहा कि मेरे शौक को तो केवल आचार्यश्री ही दूर कर सकते हैं।

बालचंदजी उन्हें अपने साथ लेकर आचार्यश्री की सेवा में उपस्थित हुए। सारी बात निवेदित करते हुए किसनरामजी के साथ उन्होंने भी उदासर में चातुर्मास करवाने के लिए विनम्र प्रार्थना की। आचार्यश्री ने तब संवत् 1968 का चातुर्मास करवाने के लिए वहां प्रथम बार मुनि चिरंजीलालजी को भेजा।

उस चातुर्मास प्राप्ति की किसनरामजी के मन में इतनी प्रसन्नता थी कि जब वे आचार्यश्री की सेवा करके वापस उदासर गए तब उन्होंने उसका उत्सव मनाया। आसपास के गांवों में लोगों को सूचित किया और धर्म-लाभ उठाने के लिए सेवा में आने का निमंत्रण दिया। उस चातुर्मास में वहां काफी उपकार हुआ।

*धर्म प्रसारक और विश्वासपात्र श्रावक किसनरामजी सेठिया की धर्म प्रसार शैली* के बारे में जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻 *संघ संवाद* 🌻
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क्राइस्ट आर्ट्स
एंड साइंस कॉलेज,
कीलाचेरी (तमिलनाडु)
🔮
*गुरवरो धम्म-देसणं*

📒
आचार्य प्रवर के
मुख्य प्रवचन के
कुछ विशेष दृश्य

🏮
कार्यक्रम की
मुख्य झलकियां

📮
दिनांक:
30 नवम्बर 2018

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प्रस्तुति:
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☝ *लक्ष्य सामने सर्वोदय हो,*🌞
⛩ *खुले प्रगति के द्वार ।।* ⛩
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🙏 *पूज्यप्रवर अपनी धवल सेना के साथ विहार करके "कीलाचेरी" पधारेंगे..*

👉 *आज का प्रवास: क्राइस्ट आर्ट्स एंड साइंस कॉलेज, कीलाचेरी (Keelachery, T.N.)..*
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👉 *आज के विहार के कुछ मनोरम दृश्य..*

दिनांक: 30/11/2018

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