27.10.2017 ►TSS ►Terapanth Sangh Samvad News

Published: 27.10.2017
Updated: 29.10.2017

Update

👉 गांधीनगर, बेंगलुरु: तेरापंथ महिला मंडल द्वारा “जैन जीवन शैली” कार्यशाला का आयोजन
👉 ईरोड: जीवन विज्ञान अकादमी द्वारा सेंगुंथेर गर्ल्स एवं बॉयज हायर सेकेंडरी स्कूल में क्रमशः "जीवन विज्ञान कार्यशाला" का आयोजन
👉 ईरोड: "अणुव्रत प्रतियोगिता" का आयोजन

प्रस्तुति: 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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Update

👉 अध्यात्म साधना केन्द्र, महरौली (दिल्ली)
📍अणुव्रत महासमिति (2017-19) की प्रबन्ध मण्डल की प्रथम बैठक

प्रस्तुति - *अणुव्रत सोशल मीडिया*

प्रसारक 🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻

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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।

📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙

📝 *श्रंखला -- 183* 📝

*आगम-पिटक-आचार्य*
*स्कन्दिल, हिमवन्त, नागार्जुन*

*हिमवन्त और नागार्जुन*

नंदी स्थविरावली में अनुयोगधर आचार्य नागार्जुन का नाम हिमवंत के बाद है। इस स्थविरावली के अनुसार नागार्जुन का क्रम 23वां है। वल्लभी युगप्रधान पट्टावली में सिंहसूरि के बाद नागार्जुन का क्रम 25वां है। जिनदास महत्तर ने अपनी चूर्णि में और हिमवंत स्थविरावली में नागार्जुन को हिमवंत का शिष्य माना है। नंदी स्थविरावली में नागार्जुन के शिष्य भूतदिन्न को नाइल कुल वंश वृद्धिकारक बताया है। नाइल कुल या नागेंद्र कुल का संबंध वज्रसेन के शिष्यों से था। इनके पूर्व की परंपरा आचार्य सुहस्ती की परंपरा से संबंधित थी, अतः नाइल कुल वंश वृद्धिकारक भूतदिन्न के गुरु नागार्जुन भी आचार्य सुहस्ती की परंपरा के स्थविर सिद्ध होते हैं।

*जीवन-वृत्त*

'वीर निर्वाण संवत् और जैन काल गणना' कृति में प्रदत्त हिमवंत स्थविरावली के अनुसार आचार्य स्कंदिल का जन्म मथुरा के ब्राह्मण परिवार में हुआ। उनके पिता का नाम मेघरथ और माता का नाम रूपसेना था। मेघरथ और रूपसेना दोनों उत्कृष्ट धर्म की उपासना करने वाले जिनाज्ञा के प्रतिपालक श्रावक थे। गृहस्थ में आचार्य स्कंदिल का नाम सोमरथ था। ब्रह्मद्वीपिका शाखा के स्थविर सिंहरथ के उपदेश से प्रभावित हो सोमरथ ने उनके पास श्रमण दीक्षा ग्रहण की।

द्वादश वर्षीय दुष्काल के प्रभाव में अनेक श्रुतधर मुनि वैभारगिरि एवं कुमारगिरि पर्वत पर अनशनपूर्वक स्वर्गस्थ हो चुके थे। इस अवसर पर आगमश्रुत की भी बहुत क्षति हुई। दुष्काल की समाप्ति पर मथुरा में आयोजित श्रमणों के महासम्मेलन की अध्यक्षता आचार्य स्कंदिल ने की। सम्मेलन में मधुमित्र, गंधहस्ती आदि 150 श्रमण उपस्थित थे। मधुमित्र एवं स्कंदिल दोनों आचार्य सिंह के शिष्य थे। नंदी सूत्र में इन्हें ब्रह्मद्विपक सिंह कहा गया है। आचार्य गंधहस्ती मधुमित्र के शिष्य थे। उनका वैदुष्य उत्कृष्ट था। आचार्य उमास्वाति के तत्त्वार्थ सूत्र पर आठ हजार श्लोक परिमाण महाभाष्य की रचना आचार्य गंधहस्ती ने की।

गुरुभाई आचार्य मधुमित्र, महाविज्ञ आचार्य गंधहस्ती एवं तत्सम अनेक विद्वान् श्रमणों के स्मृत पाठों के आधार पर आगम सूत्र का संकलन हुआ। अनुयोगधर आचार्य स्कंदिल ने उसे प्रमाणित किया। आचार्य स्कंदिल की प्रेरणा से विद्वान् शिष्य गंधहस्ती ने ग्यारह अंगों का विवरण लिखा। मथुरा निवासी ओसवाल वंशज श्रावक पोशालक ने गंधहस्ती विवरण सहित सूत्रों को ताड़ पत्रों पर लिखवाकर निर्ग्रंथों को अर्पित किया। आचार्य गंधहस्ती को ब्रह्मद्वीपिका शाखा में मुकुटमणि के तुल्य माना है।

हिमवंत धृति संपन्न, महापराक्रमी, परम स्वाध्यायी, अनुयोगधर आचार्य थे एवं उपसर्गादि प्रतिकूलताओं को सहने में वे हिमालय की भांति अकंप थे। इनके जन्म, वंश, परिवार आदि की सामग्री उपलब्ध नहीं है।

*आचार्य हिमवंत का परिचय चूर्णिकार ने किस प्रकार दिया है...?* पढ़ेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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त्याग, बलिदान, सेवा और समर्पण भाव के उत्तम उदाहरण तेरापंथ धर्मसंघ के श्रावकों का जीवनवृत्त शासन गौरव मुनि श्री बुद्धमलजी की कृति।

📙 *'नींव के पत्थर'* 📙

📝 *श्रंखला -- 7* 📝

*गेरूलालजी व्यास*

*दहेज में मुख वस्त्रिका*

व्यासजी स्वामी भीखणजी के भक्त बने, उस समय उनसे परिचित स्थानकवासी साधु तथा आचार्य काफी रुष्ट हुए। उन लोगों ने उन पर काफी दबाव डाले परंतु वो किसी भी दबाव से प्रभावित नहीं किए जा सके। कालांतर में जब उनका पुत्र विवाह योग्य हुआ तब उन लोगों को बदला लेने का अवसर प्राप्त हुआ। स्वयं ओट में रहकर उन्होंने ब्राह्मणों को उत्तेजित किया। व्यासजी के जैनत्व से ब्राह्मण वर्ग स्वयं ही असंतुष्ट था, फिर छद्म मित्रों से उत्तेजना मिली तो उनकी द्वेषाग्नि तीव्रता से भड़क उठी। उन लोगों ने व्यासजी का अघोषित सामाजिक बहिष्कार कर दिया।

व्यासजी द्वारा अनेक प्रयास किए जाने पर भी जोधपुर में उन्हें अपनी पुत्री देने के लिए कोई उद्यत नहीं हुआ। अंततः उन्हें उसका संबंध किसी दूसरे गांव में ही करना पड़ा। वहां भी संबंध छुड़ाने के लिए लोगों ने अनेक प्रयास किए, परंतु अच्छे घर तथा शहर के लालच ने उसे स्थिर बनाए रखा।

दोनों समधियों को परस्पर भिड़ा देने के भी अनेक प्रयास किए गए। लड़की के पिता को किसी ने दुरभिसंधिपूर्वक सुझाव दिया कि व्यासजी जैन हो गए हैं, अतः उनके घर पर तुम्हारी पुत्री को भी मुखवस्त्रिका, आसन एवं प्रमार्जनी की आवश्यकता होगी। तुम्हें वे सब दहेज में देने चाहिए। सरल ग्रामीण व्यक्ति उनकी बातों में आ गया। उसने दहेज की अन्य वस्तुओं के साथ उक्त उपकरण भी रखे। उन्हीं लोगों ने तब व्यासजी को सुलगाने का प्रयास करते हुए कहा— "दहेज में इन वस्तुओं को रखकर समधी ने आपके जैन हो जाने का उपहास किया है।"

व्यासजी बड़े सावधान व्यक्ति थे। किसी के कथन मात्र से उनके विचारों में सहजतया हलचल नहीं मचा करती थी। व्यक्ति तथा उसके कार्यों और भावों का पूरा परीक्षण करने के पश्चात् ही अपना मंतव्य स्थिर किया करते थे। वे समधी की सरलता तथा उनके मित्रों की कुटिलता को तत्काल समझ गए। उन्होंने प्रसन्नता व्यक्त करते हुए कहा— "मेरे समधी बहुत बुद्धिमान हैं। वे जानते हैं कि मैं जैन हूं, अतः उनकी पुत्री को भी मेरे यहां आने पर सामायिक पौषध आदि धार्मिक अनुष्ठान करते समय उक्त उपकरणों की आवश्यकता होगी। इस दहेज के द्वारा उन्होंने अपनी पुत्री को सूचित किया है की उस घर में जाकर उसे भी जैन बन जाने की आवश्यकता है।" व्यासजी का अनुकूल उत्तर सुनकर दुरभिसंधि करने वालों की चाल व्यर्थ हो गई।

*प्रथम प्रचारक*

गेरूलालजी अपनी आजीविका के लिए नौकरी किया करते थे। कच्छ स्थिति मांडवी नगर के एक सनातनी मठ के महंत की संपत्ति पाली तथा जोधपुर में भी थी। व्यासजी दोनों ही स्थानों पर देखरेख के लिए नियुक्त थे। वहां की आय तथा व्यवस्था संबंधी कार्यों के लिए समय-समय पर उन्हें मांडवी जाना पड़ता था। आते-जाते समय वे अपना रात्रिकालीन विश्राम बहुधा किसी जैन उपाश्रय या स्थानक में किया करते थे। वहां वे सामायिक करते तथा स्वामीजी निर्मित्त श्रद्धा एवं आचार संबंधी गीतिकाओं का स्वाध्याय करते। उपस्थित व्यक्तियों के साथ यथा अवसर धार्मिक चर्चा भी करते। उन्होंने इस पद्धति से अनेक क्षेत्रों में स्वामीजी का संदेश पहुंचाया और अनेक व्यक्तियों को सुलभ बोधि एवं सम्यक्त्वी बनाया। उनके धार्मिक प्रचार के इन कार्यों को देखकर कहा जा सकता है कि व्यासजी तेरापंथ के प्रथम श्रावक होने के साथ-साथ दूर देशों में धर्म प्रचार करने वाले श्रावकों में भी प्रथम थे।

*गेरूलालजी व्यास ने कच्छ में तेरापंथ के बीज वपन कैसे किए...?* जानेंगे और प्रेरणा पाएंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...

प्रस्तुति --🌻तेरापंथ *संघ संवाद*🌻
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Update

👉 कोयम्बत्तूर: छः चरणीय "ज्ञानदीप" प्रतियोगिता का आयोजन
👉 सादुलपुर-राजगढ़: अणुव्रत समिति द्वारा श्री नेहरू बाल मंदिर स्कूल में अणुव्रत कार्यशाला का आयोजन
👉 सिकंदराबाद: आचार्य श्री तुलसी के 104 वें जन्मदिवस “अणुव्रत दिवस” के उपलक्ष में न्यू गवर्नमेंट कॉलेज में 'अणुव्रत' का कार्यक्रम
👉 डिप्टी खेड़ा - आओ चले गांव की और परियोजना के अंतर्गत ते.म.म. द्वारा सेवाकार्य
👉 कोयम्बत्तूर: अखिल भारतीय तेरापंथ युवक परिषद के राष्ट्रीय अध्यक्ष की "संगठन यात्रा"
👉 राजरहाट, कोलकत्ता - जैन जीवन शैली कार्यशाला व बंदनवार प्रतियोगिता का आयोजन
👉 सादुलपुर-राजगढ: अणुव्रत समिति द्वारा राजकीय नव सर्जित बालिका उच्च प्राथमिक विद्यालय में "अणुव्रत आचार संहिता" कार्यशाला का आयोजन एवं विद्यालय के उपयोग हेतु कुर्सियां भेंट..
👉 बारडोली - जैन संस्कार विधि के बढ़ते चरण
👉जोधपुर - अणुव्रत महासमिति सहमंत्री राजेश कावड़िया का जन्मभूमि में आगमन पर स्वागत कार्यक्रम
👉 शालीमार बाग, दिल्ली - आचार्य तुलसी का 104 वां जन्मदिवस अणुव्रत दिवस के रूप में आयोजित
👉 ईरोड: "अणुव्रत दिवस" - द्वितीय चरण, महामांगलिक एवं दीपावली स्नेह मिलन का आयोजन
👉 नोहर: दो दिवसीय कन्या मंडल "संस्कार निर्माण शिविर" के परिसम्पन्न होने पर "समापन समारोह" का आयोजन
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  1. आचार्य
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