Update
👉 कटक - नेत्र परीक्षण व चिकित्सा शिविर आयोजित
👉 आनंद विहार (दिल्ली) - रेल्वे स्टेशन पर सामायिक साधना
👉 वेलेचेरी - नववर्ष के अवसर पर कार्यक्रम आयोजित
प्रस्तुति:🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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पूज्य प्रवर का प्रेरणा पाथेय
👉 नगरवासियों के खुले भाग्य, घर बैठे महातपस्वी संत के दर्शन का मिला लाभ
👉 भव्य जुलूस के साथ पटना शहरवासियों ने अहिंसा यात्रा प्रणेता का किया स्वागत
👉 लगभग नौ किलोमीटर का विहार कर आचार्यश्री पहुंचे रामदेव महतो सामुदायिक भवन
👉 आचार्यश्री ने लोगों को कराया कराया कर्त्तव्य निष्ठा का बोध
दिनांक 31-03-17
📝 धर्म संघ की तटस्थ एवं सटीक जानकारी आप तक पहुंचाए
🌻 *तेरापंथ संघ संवाद* 🌻
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👉 बैंगलोर - भिक्षु धाम में शपथ ग्रहण समारोह का आयोजन
👉 भीलवाड़ा - साध्वी श्री का मंगल प्रवेश
👉 जयपुर - अणुव्रत समिति द्वारा सेवा कार्य
👉 अहमदाबाद - 'स्वच्छ भारत Walkathon' का आयोजन
👉 शाहीबाग (अहमदाबाद) - "नशा घटे दुर्घटना हटे" विषय पर कार्यक्रम आयोजित
प्रस्तुति: 🌻 *तेरापंथ संघ संवाद*🌻
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Update
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आचार्य श्री तुलसी की कृति आचार बोध, संस्कार बोध और व्यवहार बोध की बोधत्रयी
📕सम्बोध📕
📝श्रृंखला -- 18📝
*आचार-बोध*
*एषणा के दोष*
लय- वन्दना आनन्द...
*50.*
हृदय शंकित और म्रक्षित-कर
सचित्त रजें लगी।
देय वस्तु सचित्त ऊपर रखी
या उससे ढकी।।
*51.*
दान दे जिस पात्र से उससे
सचित्त निकालकर दे।
सचित्ताचित्त मिश्रित विधि
अंधा पंगु नर।।
*52.*
पूर्ण प्रासुक जो न हो,
कर लिप्त जो धोना पड़े।
गिराता भू पर अशन
दस एषणा-दूषण खड़े।।
*12. एषणा-दोष*
आहार ग्रहण करते समय एषणा के संबंध में होने वाले दोषों को एषणा या ग्रहणैषणा के दोष कहा जाता है। इनका संबंध साधू और गृहस्थ दोनों से है। ये दस प्रकार के हैं। पिण्डनिर्युक्ति में इनका उल्लेख इस प्रकार है--
संकीय मक्खिय निक्खित
पिहिया साहरिय दायगुम्मिसे।
अपरिणय लित्त छड्डिय
एसणदोसा दस हवंति।।520।।
*1. शंकित--* आधाकर्म आदि दोषों की संभावना से भिक्षा लेना।
*2. म्रक्षित--* सचित्त रजों से युक्त हाथ आदि से भिक्षा लेना।
*3. निक्षिप्त--* सचित्त पदार्थ पर स्थापित देय वस्तु का ग्रहण।
*4. पिहित--* सचित्त पदार्थ से ढकी हुई देय वस्तु का ग्रहण।
*5. संहृत--* देय वस्तु जिस पात्र में हो, उससे सचित्त बाहर निकालकर भिक्षा देना।
*6. उन्मिश्र--* सचित्त और अचित्त मिश्रित वस्तु की भिक्षा लेना।
*7. दायक--* अंधे, पंगु आदि अविधि से देने वाले के हाथ से भिक्षा लेना।
*8. अपरिणत--* जो पूर्ण रुप से प्रासुक- अचित्त न हो, उस वस्तु का ग्रहण।
*9. लिप्त--* हाथ, पात्र आदि को दही आदि से लिप्त कर दी जानेवाली भिक्षा, जिसे ग्रहण करने के बाद हाथ आदि धोने से पश्चात्कर्म दोष की संभावना हो।
*10. छर्दित--* अशन आदि को भूमि पर गिराते हुए दे, वह भिक्षा लेना।
*मांडलिक दोष* के बारे में विस्तार से जानेंगे-समझेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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जैनधर्म की श्वेतांबर और दिगंबर परंपरा के आचार्यों का जीवन वृत्त शासन श्री साध्वी श्री संघमित्रा जी की कृति।
📙 *जैन धर्म के प्रभावक आचार्य'* 📙
📝 *श्रंखला -- 18* 📝
*आगम युग के आचार्य*
*श्रमण-सहस्रांशु आचार्य सुधर्मा*
*आगम-रचना*
गतांक से आगे...
*दिट्ठिवाय (दृष्टिवाद)*
यह बारहवां अङ्गागम है। इसमें विविध दृष्टियों एवं नयों का प्रतिपादन हुआ है। यह इसके नाम से ही स्पष्ट है।
दृष्टिवाद के पांच विभाग हैं। परिकर्म, सूत्र, पूर्वगत, अनुयोग, चूलिका। इन में पूर्वगत विभाग में उत्पाद पूर्व, अग्रायणीयपूर्व, वीर्यप्रवाद आदी चतुर्दश पूर्वों का सार गर्भित है।
स्थानांगसूत्र में दृष्टिवाद के दस पर्यायवाची नाम बताए गए हैं। उनमें एक नाम पूर्वगत है। नंदी सूत्र में दृष्टिवाद का संक्षिप्त परिचय है। उसके अनुसार जिन देव प्रणीत समस्त भावों का निरूपण इस बारहवें अंग में निर्दिष्ट है। वर्तमान में यह बारहवां अंग अनुपलब्ध है।
मलधारी हेमचंद्र की विशेष आवश्यकवृत्ति में कुछ भाष्य गाथाओं को आगम के तृतीय विभाग पूर्वगत से संबंधित बताया गया है।
*सर्वज्ञत्वश्री की उपलब्धि*
आचार्य सुधर्मा उम्र में भगवान् महावीर से आठ वर्ष ज्येष्ठ थे। जिनशासन का सम्यक् संचालन करते हुए उन्हें बानवें (92) वर्ष की वृद्ध अवस्था में वी. नि. 12 (वी. पू. 458) में सर्वज्ञ श्री की उपलब्धि हुई। अविकल ज्ञान से मंडित होकर प्रखर भास्कर के समान वे भारत वसुधा पर चमके। सहसों-सहस्रों व्यक्तियों को उन से दिव्यप्रकाश प्राप्त हुआ।
*समय-संकेत*
आचार्य सुधर्मा पचास (50) वर्ष तक गृहस्थ जीवन में रहे। उन्हें तीस वर्ष तक भगवान् महावीर की सन्निधि प्राप्त हुई। वीर निर्वाण के बाद बारह वर्ष का उनका छद्मस्थकाल और आठ वर्ष का केवलिकाल है। उनके जीवन का पूरा एक शतक प्रभावक जैनाचार्यों की प्रलंबमान श्रृंखला की प्रथम कड़ी है।
वैभवगिरी पर मासिक अनशन के साथ श्रमण सहस्रांशु सुधर्मा वी. नि. 20 (विक्रम पूर्व 450) में देहबंधन को तोड़कर आत्म-साम्राज्य के अधिकारी बने। आचार्य सुधर्मा के धार्मिक परिवार का कल्पवृक्ष की भांति विस्तार हुआ।
*आचार्य काल*
(वी. नि. 1-20)
(वि. पू. 470-450)
(ई. पू. 527-507)
*भगवान महावीर के द्वितीय उत्तराधिकारी ज्योतिपुञ्ज आचार्य जम्बू* के बारे में विस्तार से जानेंगे... हमारी अगली पोस्ट में... क्रमशः...
प्रस्तुति --🌻तेरापंथ संघ संवाद🌻
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*श्रावक सन्देशिका*
👉 पूज्यवर के इंगितानुसार श्रावक सन्देशिका पुस्तक का सिलसिलेवार प्रसारण
👉 श्रृंखला - 43 - *वंदन-अभिवादन व्यवहार*
*अन्य सम्प्रदाय* क्रमशः हमारे अगले पोस्ट में....
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News in Hindi
👉 पूज्य प्रवर का आज का लगभग 8.5 किमी का विहार..
👉 आज का प्रवास - रामदेव महतो सामुदायिक भवन, "पटना सिटीे" पधारेंगे
👉 आज के विहार के दृश्य..
दिनांक - 31/03/2017
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31 मार्च का संकल्प
तिथि:- चैत्र शुक्ला चतुर्थी
गुरुवर का तो नाम ही है बड़ा चमत्कारी ।
जपें विशुद्ध भाव से है बड़ा प्रभावकारी ।।
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